प्रेमगीत
इन हसीं वादियों में इन चहकते पंछियों के बीच इस ढलती शाम में मेरी प्रियतमा, चलो एक प्रेमगीत गाए उस प्रेमगीत में केवल हमारी ही प्रेमगाथा हो कर्णप्रिय जो लगे उसमे वैसा मधुर राग हो हमारी प्रेमगाथा सुनकर ये प्रकृति…
शादी एक नए रिश्ते की शुरुआत होती है और कलमकार ने जताया है कि यदि सहमति हो जाए तो अपार खुशी मिलती है। - तुम अपनी यादों को थोड़ा तो समझा दो अपनी बातों को थोड़ा तो लज्जा दो तुम…
हाँ, मैं लड़की हूँ निडर और प्रतिभावान हूँ इस समाज के लिए प्रतिष्ठा हूँ ईश्वर की वरदान भी हूँ हाँ, मैं लड़की हूँ विद्या मेरा सिंगार है अस्मिता ही मेरी वस्त्र है समाज की रूढ़िवादी जंजीरों से मुक्त हूँ हाँ,…
जब जब हरीम-ए-दिल को तन्हा पाते वो मिल जाते आते जाते अबरू-ए-ख़मीदा, निगह-ए-मस्त, सर्व-क़ामत बयाँ ख़िज़्र-ए-हुस्न को हम जो कर नहीं पाते दूर से ही हो जाता सलाम दुआ काश! हम उनको कभी अपना कह पाते नहीं कोई अब आरज़ू-ए-चश्मा-ए-कौसर…
ज़िंदगी शब्द नहीं एक महाकाव्य है इसमें छुपी अनगिनत कहानिया है जिसने महाकाव्य की कहानियों को समझ लिया उसने ज़िन्दगी को जीना सिख लिया मेरी ज़िन्दगी महाकाव्य कम और महाभारत ज्यादा थी मेरी ज़िन्दगी, ज़िन्दगी कम बवाल ज्यादा थी मेरी…
यह दुनिया इतनी मतलबी क्यों है? ऐसे ही कुछ प्रश्न अमित मिश्र की पंक्तियों में पूछे गए हैं। ये दुनियाँ इतनी मतलबी क्यूँ है, किसी के आंसुओं पे हँसती क्यूँ है न दे सके सहारा तो कोई बात नहीं किसी…
I am a journalist, author and poet. Having worked with many leading English newspapers and have authored 2 books on media education and 1 book (Jazba-e-Mohabbat) on poetry. मेरी कलम संपर्क नाम: रज़ा इलाहीजन्मदिन: १२ दिसंबर १९७३जन्मभूमि:कर्मभूमि: नोएडा, उत्तर प्रदेशशिक्षा:…
ऋषभ तिवारी की एक कविता - डूबती शाम ... आजकल के इंसान की फितरत और कड़वे सच का जिक्र करती हुई कुछ पंक्तियाँ। इस तरह बादलों ने जमी को घेरा न था हर सांस में डूबा शाम कहीं सबेरा न…
रोज़ दिखती थी वह रोज़ मिलती थी वह चौराहे पे जैसे खो गई थी वह अपना सदक़ा समझ कर चंद पैसे दे कर गाड़ी बढ़ा देता ज़िन्दगी के रफ़्तार से रफ़्तार मिला देता पर उसकी हिजाबी आँखें और उजरी क़बाएँ…
संतान को माँ अपनी पीड़ा कभी जाहिर होने नहीं देती। ऋषभ तिवारी की कविता "माँ की व्यथा" इसी भाव को दर्शाती हैं। दरवाजे पे हो दस्तक, तो माँ समझे कि मैं आया सोती न जगती कहती रहती, बेटा देखो घर…
कोशिश करने वालों की हार नहीं होती चुपचाप बैठे रहने से सफलता की प्राप्ति नहीं होती अगर पाना चाहते हो कामयाबी तो कुछ नहीं, एक कार्य करना होगा असफलता को भुलाकर पुनः कोशिश करना होगा इतनी मेहनत करो की माथे…
कोरे कागज पर हमने प्यार लिख दिया। मुस्कुराहट पर जिन्दगी नाम लिख दिया।। सब लिख रहे थे खुदा, भगवान का नाम। हमने अपने महबूब का नाम लिख दिया।। थक गये हैं लोग खुदा की इबादत करते। मैंने तो इंतजार में…
दिन तो याद नहीं, लेकिन कुछ हुआ ज़रूर था, जो हम पहले दूर हुए, और फिर तन्हा हुए, मुझे उस पर खुद से ज़्यादा ट्रस्ट था, और उसने हर बार ट्रस्ट की धज्जियाँ उड़ाईं, जो मेरे हर जख्म का मलहम…
कलमकार प्रोफ़ाइल: ऋषभ तिवारी जन्मदिन: ५ सितंबर १९९५ जन्मभूमि: कर्मभूमि: शिक्षा: LLB 2nd Year (form BHU, Varanasi) शौक: कविताए लिखना Facebook: ऋषभ तिवारी Mobile: +91- Email: Website: - ऋषभ अपने बारे में कहते है- समस्या भारी ज़िन्दगी में कविताए ही…
देश के वीर सपूतों का बलिदान नहीं मैं भूलूँगा दफ़न किया है जहाँ उसे उस मिट्टी को चूमूँगा देश की मिट्टी को जिसने लहू से अपने सींचा है भारत की आजादी जिसने दुश्मन से खींचा है अपनी कुर्बानी से जिसने…
आज सुबह विनय ने काफी जल्दी मेडिकल की दुुकान खोल ली थी और लगातार कई डॉक्टरों के दवाई लेने आने के कारण वह काफी थक भी गया था तभी उसके सामने उसकी हम उम्र चश्मा लगाए हुए एक व्यक्ति अपने…
बलिदान देश के लिए ~ दिनेश कुमार आजादी के महापर्व पर YM Dinesh Kumar की एक कविता ठान लो जेहन में जिद बांध लो कफ़न को सिर बढ़ते चलो अपने मंजिल की ओर एक दिन सफलता की निकलेगी उद्विद। …
गैरों की क्या बात करें, अपनों ने ही दामन खींचा है। वो पेड़ तो लहराता है, जिसको अंसुओं से सींचा है।। सोचा था मैंने इक दिन, मुझको देगा हवा वो ताजी। अब तो वो बड़ा हो गया, अब वो चलाता…
सर उठाकर चाहे चलने लगे है लोग सच को अपने आप में छलने लगे है लोग किसी को सिर काटने से डर नहीं लगता अपने सर को देख क्यों डरने लगे है लोग कैसे करे भरोसा हम सर को देखकर…
कलमकार भवदीप सैनी का परिचय मूल नाम: भवानी शंकर साँखला जन्मदिन: ९ दिसंबर १९९१ जन्मभूमि: नागौर, राजस्थान कर्मभूमि: बेंगलुरु, कर्नाटक शिक्षा: इंजीनियर शौक: लेखन Facebook: भवदीप सैनी Twitter: Instagram: Mobile: Email: bhawxxxxxx291@gxxxxl.com Website: - भवदीप सैनी अपने बारे में कहते…