लॉकडाउन को निभाया है
लॉकडाउन को हमने कुछ इस तरह निभाया है ट्रेन की रफ्तार सी भाग रही थी ज़िन्दगी वक़्त ने उस पर पहरा बिठाया हैं अब वक्त हमने आत्मचिंतन के लिए पाया हैं सुबह उगते हुए सूरज के सामने अपना शीश झुकाया…
लॉकडाउन को हमने कुछ इस तरह निभाया है ट्रेन की रफ्तार सी भाग रही थी ज़िन्दगी वक़्त ने उस पर पहरा बिठाया हैं अब वक्त हमने आत्मचिंतन के लिए पाया हैं सुबह उगते हुए सूरज के सामने अपना शीश झुकाया…
एक कविता को जन्म देने में कवि को किस हालात और विचार मंथन से गुजरना होता है यह कलमकार राजेश्वर प्रसाद अपनी इन पंक्तियों में बता रहें हैं। कवि की प्रसव पीड़ा नामक यह कविता रचनाकार के मन की व्यथा संबोधित…
ट्रैफिक की जाम कभी करती थी परेशान लोगों की चिल्लाहट भरी भीड़ कानो को जाती थी चीर! आज ये सड़कें 'सहमी-सुनसान' कह रही मानो.. लगा दो मुझपर फिर वही 'जाम'। अब नहीं चिल्लाहट कोई, ना मुहल्ले में गरमाहट कोई.. गलिया…
भौंकते श्वानों की हृदय विदारक आवाज़ सुनकर व बेबस जानवरो सहित भूख से ठोंकरे खाते बहुत सारे बेसहारों को देखकर मन सुन्न सा पड़ गया है अभी तक अनजान था मै इस बात से कि इनका पेट कैसे भरता होगा?…
कुंडलिया छन्द के माध्यम से कवि कमल भारद्वाज एक व्यंग से लॉकडाउन को संबोधित कर रहें हैं। मियाँ घर पै डाल रहे, बैठे मिरच अचार।बीबी का भी बंद है, भ्रमण और संचार।भ्रमण और संचार, बंद सब कानाफूसी।घर में दोनों बंद,…
कलमकार हिमांशु शर्मा जी ने अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत की है, पढ़कर आप अपनी राय बताएं। सज़दा मांगो तो मिलता नहीं है, बल्कि सज़दा हो जाता है, दीदार मांगो तो मिलता नहीं है, दीदार रब दा हो जाता है। यूँ…
कलमकार सुजीत कुमार कुशवाहा माँ की याद अपनी कविता में लिखते हैं। माँ का साथ यदि छूट जाता है तो हम ममता की छत्रछाया से वंचित रह जाते हैं। आती, पर मिल सकता नहीं। लौट आओ ना माँ, याद जाता…
लॉकडाउन हुआ देखो देश में, सब को हुआ है अवकाश। गृहिणी को छुट्टी आज भी नहीं, वो कितनी होगी बदहवास।। वो खुश तो दिख रही है बहुत, सभी अपने जो है उसके पास। मन में कौन झाँके उसके, कौन बनाए…
अजय प्रसाद जी की चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत है जो मन की बात कह डालने पर जोर दे रहीं हैं। सुननेवाले का जबाब पाने के बाद और भी कुछ इजहार करने का मन करता है। भरी दुपहरी को चांदनी रात कह…
हर इंसान की अपनी इच्छाएं होती हैं, हमारी बेटियों के मन में भी अनेक इच्छाएं और अरमान होते हैं। हमें उनकी चाहतों को जान समझकर अवश्य पूरा करना चाहिए। कलमकार गौरव शुक्ला 'अतुल' अपनी कविता में बेटियों की चाह को…
भले चांहे सारा दिन सो कर बिताना भले चांहे खाना दिन मे एक बार खाना भले चांहे दिन चार भूखे विताना किसी भी तरह से समय को विताना मगर मेरे बेटे बाहर न जाना बाहर है भयानक वायरस कोरोना सारी…
हालात देश की गंभीर है अब तो संभल जाओ यारो हैं पल तो कठिन बहुत अब तो रुक जाओ यारो। जूझ रहा है हर इंसान जिंदगी अपनी संवारों जीवन बहुत ही अमूल्य है अब कीमत समझो यारों। राग द्वेष जात…
कलमकार उमा पाटनी लिखतीं हैं की धैर्य हमेशा सफलता और शांति का परिचायक होता है। अक्सर हर छोटी-बड़ी दिक्कत से हम अपना आपा को जाते हैं, किन्तु यदि धीरज धरें तो सारे कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न हो जातें हैं. वेदना की…
प्रभु! नरसिंह का अवतार धरो ना। प्रभु कोरोना की हार करो ना, ये कष्ट सभी के आप हरो ना, हो गए बन्द मंदिर, मस्जिद सब, कैलास पति का रूप धरो ना। सदमार्ग को चयनित करो ना, हृदय में मेरे करुणा…
कलमकार दिलवन्त कौर की यह रचना पढ़िये जो कहतीं है कि कलम जब भी कुछ लिखती है तो वह एक विचार बन जाता है, सच्चाई प्रकट करती है और मार्गदर्शन करती है। ये कलम जब भी कुछ लिखती है चोट…
कोरोना की आफत आई। सब को फिर से घर ले आई। चले गए थे बहुत दूर तक, अपने घर से हम सब भाई। भूल गए थे रिश्ते नाते, अपनापन और बोल भलाई। फिर लौटेगी रिश्तो में अब, पहले वाली वही…
बडे़ दुर्भाग्य की बात है कि इस महामारी के दौर में भी कई व्यवसायी आम लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकरअधिक से अधिक मुनाफा कमाने में लगे हैं। इस पर मेरी एक त्वरित नज़्म- इस इस मुश्किल वक़्त में वो…
जिसे है देश प्यारा मैं उसे पैगाम लिखता हूं, बचा लो देश को अपने ये विनती आज करता हूं कोरोना को हराना है सभी को साथ मिलकर के कोरोना से लडोगे सब ये मैं विश्वास करता हूँ कई विपदाएं झेली…
वक़्त संहार का हैं पापियों का विनाश हैं, क्यों दुआ करु की सब रुक जाए, किये हैं जो दुष्कर्म मानव भी तो उनका फल पाए। जी रहे थे जो अब तक अपने वक़्त पर घमंड कर। उनको भी तो मृत्यु…
खुदा से पूछता हूं यह सब क्या माजरा कहे जाते हो तुम करुणासागर पर लोगों के भयंकर दुख देखकर तू क्यों नहीं पिघलता गरीब के पैरों के छाले देखकर तेरा पाषाण हृदय क्यों नहीं धड़कता लाखों के प्राण है तेरे…