लॉकडाउन को निभाया है

लॉकडाउन को हमने कुछ इस तरह निभाया है ट्रेन की रफ्तार सी भाग रही थी ज़िन्दगी वक़्त ने उस पर पहरा बिठाया हैं अब वक्त हमने आत्मचिंतन के लिए पाया हैं सुबह उगते हुए सूरज के सामने अपना शीश झुकाया…

0 Comments

कवि की प्रसव पीड़ा

एक कविता को जन्म देने में कवि को किस हालात और विचार मंथन से गुजरना होता है यह कलमकार राजेश्वर प्रसाद अपनी इन पंक्तियों में बता रहें हैं। कवि की प्रसव पीड़ा नामक यह कविता रचनाकार के मन की व्यथा संबोधित…

0 Comments

खालीपन

ट्रैफिक की जाम कभी करती थी परेशान लोगों की चिल्लाहट भरी भीड़ कानो को जाती थी चीर! आज ये सड़कें 'सहमी-सुनसान' कह रही मानो.. लगा दो मुझपर फिर वही 'जाम'। अब नहीं चिल्लाहट कोई, ना मुहल्ले में गरमाहट कोई.. गलिया…

0 Comments

अर्धरात्रि के समय

भौंकते श्वानों की हृदय विदारक आवाज़ सुनकर व बेबस जानवरो सहित भूख से ठोंकरे खाते बहुत सारे बेसहारों को देखकर मन सुन्न सा पड़ गया है अभी तक अनजान था मै इस बात से कि इनका पेट कैसे भरता होगा?…

0 Comments

बंद है भ्रमण

कुंडलिया छन्द के माध्यम से कवि कमल भारद्वाज एक व्यंग से लॉकडाउन को संबोधित कर रहें हैं। मियाँ घर पै डाल रहे, बैठे मिरच अचार।बीबी का भी बंद है, भ्रमण और संचार।भ्रमण और संचार, बंद सब कानाफूसी।घर में दोनों बंद,…

0 Comments

हो जाता है

कलमकार हिमांशु शर्मा जी ने अपनी एक ग़ज़ल प्रस्तुत की है, पढ़कर आप अपनी राय बताएं। सज़दा मांगो तो मिलता नहीं है, बल्कि सज़दा हो जाता है, दीदार मांगो तो मिलता नहीं है, दीदार रब दा हो जाता है। यूँ…

0 Comments

माँ! तू है कहाँ?

कलमकार सुजीत कुमार कुशवाहा माँ की याद अपनी कविता में लिखते हैं। माँ का साथ यदि छूट जाता है तो हम ममता की छत्रछाया से वंचित रह जाते हैं। आती, पर मिल सकता नहीं। लौट आओ ना माँ, याद जाता…

0 Comments

गृहिणी तो गृहिणी है

लॉकडाउन हुआ देखो देश में, सब को हुआ है अवकाश। गृहिणी को छुट्टी आज भी नहीं, वो कितनी होगी बदहवास।। वो खुश तो दिख रही है बहुत, सभी अपने जो है उसके पास। मन में कौन झाँके उसके, कौन बनाए…

1 Comment

कह दूँ

अजय प्रसाद जी की चंद पंक्तियाँ प्रस्तुत है जो मन की बात कह डालने पर जोर दे रहीं हैं। सुननेवाले का जबाब पाने के बाद और भी कुछ इजहार करने का मन करता है। भरी दुपहरी को चांदनी रात कह…

0 Comments

चाह बिटिया की

हर इंसान की अपनी इच्छाएं होती हैं, हमारी बेटियों के मन में भी अनेक इच्छाएं और अरमान होते हैं। हमें उनकी चाहतों को जान समझकर अवश्य पूरा करना चाहिए। कलमकार गौरव शुक्ला 'अतुल' अपनी कविता में बेटियों की चाह को…

0 Comments

माँ का संदेश

भले चांहे सारा दिन सो कर बिताना भले चांहे खाना दिन मे एक बार खाना भले चांहे दिन चार भूखे विताना किसी भी तरह से समय को विताना मगर मेरे बेटे बाहर न जाना बाहर है भयानक वायरस कोरोना सारी…

0 Comments

जीवन संभालो यारों

हालात देश की गंभीर है अब तो संभल जाओ यारो हैं पल तो कठिन बहुत अब तो रुक जाओ यारो। जूझ रहा है हर इंसान जिंदगी अपनी संवारों जीवन बहुत ही अमूल्य है अब कीमत समझो यारों। राग द्वेष जात…

0 Comments

धीरज धर ऐसा होता है अक्सर

कलमकार उमा पाटनी लिखतीं हैं की धैर्य हमेशा सफलता और शांति का परिचायक होता है। अक्सर हर छोटी-बड़ी दिक्कत से हम अपना आपा को जाते हैं, किन्तु यदि धीरज धरें तो सारे कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न हो जातें हैं. वेदना की…

0 Comments

प्रभु नरसिंह का अवतार धरो ना

प्रभु! नरसिंह का अवतार धरो ना। प्रभु कोरोना की हार करो ना, ये कष्ट सभी के आप हरो ना, हो गए बन्द मंदिर, मस्जिद सब, कैलास पति  का रूप धरो ना। सदमार्ग को चयनित करो ना, हृदय में मेरे करुणा…

1 Comment

कलम जब भी कुछ लिखती है

कलमकार दिलवन्त कौर की यह रचना पढ़िये जो कहतीं है कि कलम जब भी कुछ लिखती है तो वह एक विचार बन जाता है, सच्चाई प्रकट करती है और मार्गदर्शन करती है। ये कलम जब भी कुछ लिखती है चोट…

0 Comments

कोरोना की आफत

कोरोना की आफत आई। सब को फिर से घर ले आई। चले गए थे बहुत दूर तक, अपने घर से हम सब भाई। भूल गए थे रिश्ते नाते, अपनापन और बोल भलाई। फिर लौटेगी रिश्तो में अब, पहले वाली वही…

0 Comments

महामारी के दौर में मुनाफा

बडे़ दुर्भाग्य की बात है कि इस महामारी के दौर में भी कई व्यवसायी आम लोगों की मजबूरी का फायदा उठाकरअधिक से अधिक मुनाफा कमाने में लगे हैं। इस पर मेरी एक त्वरित नज़्म- इस इस मुश्किल वक़्त में वो…

0 Comments

इस आपदा से पार पाना है

जिसे है देश प्यारा मैं उसे पैगाम लिखता हूं, बचा लो देश को अपने ये विनती आज करता हूं कोरोना को हराना है सभी को साथ मिलकर के कोरोना से लडोगे सब ये मैं विश्वास करता हूँ कई विपदाएं झेली…

0 Comments

मृत्यु का अट्टहास

वक़्त संहार का हैं पापियों का विनाश हैं, क्यों दुआ करु की सब रुक जाए, किये हैं जो दुष्कर्म मानव भी तो उनका फल पाए। जी रहे थे जो अब तक अपने वक़्त पर घमंड कर। उनको भी तो मृत्यु…

0 Comments

खुदा से पूछता हूं

खुदा से पूछता हूं यह सब क्या माजरा कहे जाते हो तुम करुणासागर पर लोगों के भयंकर दुख देखकर तू क्यों नहीं पिघलता गरीब के पैरों के छाले देखकर तेरा पाषाण हृदय क्यों नहीं धड़कता लाखों के प्राण है तेरे…

0 Comments