बाहर बैठा है कोरोना
पापा मेरी सुन लो ना बाहर घर से न जाना चाहे कुछ भी न लाना बाहर बैठा है कोरोना। हमको अंदर ही रहना हाथ रगड़कर के धोना नियमों का पालन करना बाहर बैठा है कोरोना। बच्चों बड़ों की सुध लेना…
पापा मेरी सुन लो ना बाहर घर से न जाना चाहे कुछ भी न लाना बाहर बैठा है कोरोना। हमको अंदर ही रहना हाथ रगड़कर के धोना नियमों का पालन करना बाहर बैठा है कोरोना। बच्चों बड़ों की सुध लेना…
हम सभी को निरंतर प्रयत्नशील रहना चाहिए, कभी भी हताशा का शिकार नहीं बनना चाहिए। कलमकार पूजा कुमारी साव की यह कविता आपका मनोबल को बढाने में सहायक है। मिलेगी मंजिल, जरूर हमें आज नहीं तो कल, यह तय है…
अनेकता में एकता, हिन्द की विशेषता, यही तो भारत वर्ष है.याद करो इतिहास का पन्ना, कर्मवती ने गुहारा था, हुमायूँ ने सेना लेकर बहन की राखी का कर्ज उबारा था.मोहन को भजते है रसखान, रहीम को है भारतीय संस्कृति का भान.अब्दुल…
आज इस कोरोना के संकट में लोग साम्प्रदायिकता फैलाकर, जातिवाद और धर्मवाद के नाम लोगों को लड़वाना चाहते हैं, उससे लोगों को सावधान करती एक नज़्म-ये कैसा आलम है, यह क्या हो रहा है। जिंदा आदमी, एक बुत को रो रहा…
कि जब ये लोक डाउन ख़त्म हो जाएगा तो मैं तुम्हें कहीं दूर लेकर जाना चाहता हुँ।यह फासले जो हमारे दरमियां आ गए हैं, उन्हें मिटाना चाहता हूँ।।तुम्हारी आंखों में देख कर फिर से एक बार डूब जाना चाहता हूँ।मेरे…
कोरोना वायरस का करो ना तुम फैलावनफ़रत का ना जलाओ तुम अलावमाना कि गहन अधंकार है हर फलक परआज भारत मां रो रही है बिलख करनवचेतना का संचार कर जला आशा का पुंजहठधर्मिता छोड़ कर हरित कर दे यह कुंजअमर्ष…
इसका न वैक्सीन है न दवाई है,धरती पर ये कैसी बीमारी आई है।विश्व की महाशक्तियों को भी इसने,पलक झपकते खासा धूल चटाई है।इस अदृश्य खूंखार विषाणु के आगे,परमाणु बमों ने भी पटखनी खाई है।ना मिलो इक दूसरे से कुछ दिनों…
मैं कोरोना हूँ, बेशक थोड़ा डरावना हूँ विष लिए फिरता हूँ अपना कर्त्तव्य करता हूँ मैं एक सा रहता हूँ रूप नहीं बदलता रंग नहीं बदलता तुम इंसान हो, बेशक अद्भुत हो ज्ञान का भंडार हो मगर अब तुम्हें पहचानना…
वाह रे, कोरोना। तूने तो गजब कर डाला, छोटी सोच और अहंकार को, तूने चूर-चूर कर डाला।। वाह रे, कोरोना। पैसो से खरीदने चले थे दुनिया, ऐसे नामचीन पड़े है होम आईसोलोशन में, तूने तो पैसो को भी, धूल-धूल कर…
कोरोना के कहर से पूरी दुनिया परेशान हैं ! भांति भांति के लोग दे रहे अपना ज्ञान है !! इस धरती पर आई है ये कैसी बीमारी ! मानव सभ्यता पर ये संकट है अति भारी !! संकट के इस…
भरत जैसा चरित्र आजकल देख पाना संभव न होगा। कलमकार अमित मिश्र ने भरत से जुड़े तथ्यों को अपनी रचना में प्रस्तुत किया है। मुझको सिंहासन, श्री राम को वनवास दिया पुत्र मोह में माँ तुमने, ये कैसा अन्याय किया।…
बचपन के वो दिन याद है, जब पूरे साल भर में एक बार हलुआ खाने को पाते थे। वो दिन शबे बारात का होता था। रिवायतों के नाते घरों में चना और सूजी का हलवा बनता था और आज भी…
वैश्विक मचा हुआ है त्राहिमाम मानसिक रूप से न है आराम फिर भी कुछ लोगों को आ रही ख़ूब हँसी जबकि इस भंयकर बीमारी ने कितने परिवारों की छीनी है ख़ुशी कुछ लोग मज़ाक कर रहे हैं पर नहीं समझ…
उनकी मेहनत के बिना ये उन्नत शहर नहीं होते, वो नहीं बनाते पसीने से तो हमारे घर नहीं होते। वो आज सड़कों पर दर- दर भटक रहे हैं यहाँ बहुत दुःखद है मगर सच है उनके घर नहीं होते। भौतिकता…
इक दिन हार जाएगी ये बीमारी हवाओं का ये डर अब नहीं रहेगा। खौफ का असर कुछ दिन और हैं शहर सहमा हुआ अब नहीं रहेगा। हक़ीक़त जान जाएगा बीमारी की हर इंसान बेख़बर अब नहीं रहेगा। बंदिशें जल्द खत्म…
छोड़ वे गांव की गलियां शहर निकल गये खौफ से भरे शहर उन्हे निगल गये विस्तार नही जीवन का जो कहते थे कल फिर याद आयी अम्मा कि रोटी, कच्ची सड़के, कच्चे घर, बरगद कि छाव, आम के पेड़ तरस…
घंटियां ख़तरे की बज रहीं। योजनाएं हैंगरों में हैं टंगी। आपदाएं भूख की हैं जगी। मातम की अर्थियां सज रही। चल दिए ओढ़ चादर बेबसी की। गालियां दो और रोटी जग हंसी की। कुर्सियां हमको तज रही हैं। ~ अनिल…
कैसा ये अब वक्त आया है इंसान से इंसान घबराया है। स्वास्थ्य एक अनमोल ख़ज़ाना पर लापरवाही को आजमाया है। सेवा में जो लोग लगे दिन रात उनका बलिदान समझ न पाया हैं। अगर अभी भी समझ ना पाए हो…
घर का चूल्हा बहुत उदास रह रह पूछे एक सवाल। कब आएगा राशन पानी कब आएंगे चावल दाल।। घर की अम्मा समझाती है, सो जा भोले कल आयेंगे। जागेगी सरकारें एक दिन, खाने वाले पल आयेंगे।। लेकिन सुबह शाम हो…
कोरोना महामारी से इंसान सकुचाया है।हर जगह भय का साया है।क्रूर, निर्दय ह्रदय भी सहज हुआ है।अपने मन का अहम भी भगाया है।अपनी सोच का दायरा भी बढ़ाया है।इस कहर में भी अपना हाथ बढ़ाया है।अपनी लालसा को सिमेटकरनिर्बल, गरीब…