जगमगाया हिन्दुस्तान

जगमगाया हिन्दुस्तान, देवलोक है परेशान, ये ये जगमग ज्योति कैसी है, ये जगमग ज्योति कैसी है? क्या विश्वगुरु भारत अब जाग गया है, कोरोना जैसा रोग क्या भाग गया है, कैसी ये शंख ध्वनि, कैसा नाद है, सारा विश्व देख…

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कोरोना: कलमकारों की अभिव्यक्तियां

कोरोना • लॉकडाउन • बचाव चलो लॉकडाउन को खास बनाते हैं चलो फासलों का फायदा हम उठाते हैं, इन दूरियों में इश्क आजमाते हैं। तुम घर पर रहो अपने मैं भी रहूँ घर में, चलो इक्कीस दिन बिना मिले बिताते…

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क़भी सोचा है तुमनें

मानवीय व्यवहार और संवेदनाओं को अपनी कविता में शामिल कर कलमकार ऋतिक कुमार वर्मा पूछतें हैं कि क्या आपने कभी सोचा है? पारिवारिक मूल्यों का जीवन में बहुत बड़ा महत्व होता है। जिसने तुझे पाल-पोश कर बड़ा किया जिसने तुझे…

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चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं

कलमकार विपुल मिश्रा बुरा वक्त हंसते हंसते बिताने की बात अपनी कविता में लिखते हैं। बुरे वक्त में धैर्य की जरुरत होती है और हंसते हुए हम इसे हरा सकते हैं। चलो हंसते-हंसते बुरा वक्त बिताते हैं खुद भी हंसते…

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घर पर रहे

जब तक अपना कुछ न बिगड़ता है, तब तक कोई यहाँ न संभलता है। विपदा भारी जब आती है, तब होती यहाँ तैयारी है। नियमों को ताक पर रखने की अपनी ये पुरानी आदत है। घर पर रहना है सबको…

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पलायन

बेरोजगारी, गरीबी और मजबूरी ने मिलकर एक व्यक्ति इतना तंग किया, एक दिन वह बोरिया विस्तर लादकर घर छोड़कर चल दिया। सोचा! क्या करुँगा, कहाँ जाऊँगा मन मे बडा़ उदास था, कुछ भी करूँगा पर घर लोटकर नहीं जाऊँगा ये…

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मृत शरीर सा छाती लिए

मै इलाहाबाद का नैनी वाला नया पुल भाई मेरी उदासी का हाल क्या जाने कोई? कभी सभी टहलते थे, मेरी छाती पर अपनों के संग और अकेले भी प्रेमी जोड़े इंतज़ार में करते हुए एक दूसरे की रति के लिए…

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युद्ध

चल रहा युद्ध अब बिछ रही लाशे शत्रु अदृश्य है थम रही साँसे। न बम है न बारूद खौप है मन में अमेरिका का भी पस्त है इटली त्रस्त है चीन अभी मस्त है भारत दृढ़ है चल रहा युद्ध…

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शुक्रगुज़ार हैं प्रधानमंत्री जी के

सच कहूँ जब मैंने भी सबकी भांति सुना दीपक जलाना है तो लगा ठीक है अच्छा है इसी बहाने बिन त्यौहार त्यौहार मना लेंगे उत्सुकता जरूर थी कि इस अजीबोगरीब माहौल में आज कुछ अलग सा होगा सकारात्मक भाव लिए…

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एक दिया

इस महामारी के अंधकार की लड़ाई में आशा का एक दीपक यूं ही जलाए रहना हैं हमें आपको हम सबको देश का साथ देना हैं। मन के सारे अंधकार को मिटाकर एक दिया जलाए रखना है दौर नहीं हैं ये…

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देखा मिसाल दुनिया ने

संकल्प, इच्छाशक्ति की राशि विशाल दुनिया ने एकता के हिंद की, देखा मिसाल दुनिया ने विश्वास की परिधि ने हर मन को था घेरा हुआ लग रहा था रात में कि, जैसे सवेरा हुआ था हर तरफ प्रकाशमान दीप इतने…

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अंधकार से प्रकाश की ओर

दीप जलाकर हमने दे दिया एकता का संदेश, सबको दिखलाया सदियों से महान भारत देश। अचानक इस विपत्ति का हम करेंगे मुकाबला, एक रहेंगे सदा, हम अकबर डेविड या सुरेश।। पूरी दुनिया को हमने एकता का पाठ पढ़ाया, वसुधैव कुटुंबकम…

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दीप हम जलाएंगे

दीप हम जलाएंगे, अंधकार निराशा को हम मिटाएंगे मन में जीत की आशा जागयेंगे, कोरोना को हराएंगे जाति-धर्म से ऊपर उठ कर, एकता को दिखाएंगे राजनीति से हट कर, हम राष्ट्रीय हित अपनाएंगे भारत के नागरिक का, कर्तव्य हम निभाएंगे…

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एक दीपक जला ऐसा भी

एक दीपक जला ऐसा भी धरा में इतिहास जिसे रखेगा याद सदा। हुआ हैं डामाडोल समस्त विश्व भारत तब भी जगमगा रहा था।। अरबों की संख्या लिए लिए दीप होगा विश्व पटल में अंकित यह। दिखी है फिर भारत की…

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मैं दीया हूँ

मैं दीया हूँ, उजाले का वंशधर , जब तक प्राण वर्तिका घोर तम से लडूँगा। मैं दीया हूँ, उम्मीद की निशानी हर नगर, हर गली निराशा को हरूँगा। मैं दीया हूँ स्वयं मौन का साथी विरक्ति में भी तुम्हारे अकेलापन…

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उम्मीद का दीया

एक सवाल कुछ यूँ पूछा पापा ने, क्यूँ मौन है आज कलम? क्या दर्द नही होता, इस शायरा को अब? कैसे बयां करूँ, अंतर्मन का युद्ध डरती हूँ कैसे संभालेगी, चार पंक्तियाँ मेरे देश का दर्द। कर हिम्मत करते हैं…

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आओ दीप जलाए

अंधकार का नाश हो सारे जग मे प्रकाश हो मिलकर ऐसा कदम बढा़यें आओ मिलकर दीप जलायें कोरोना का नाश हो निज शक्ति का अहशास हो भारत को हम विजयी बनायें आओ मिलकर दीप जलायें हिन्दू , मुस्लिम सिक्ख ,ईसाई…

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हम सभी

चलो जलाये मिलकर दीप ज्योति अंधकार मय कोरोना को दूर भगाये हम सभी अपने देश की एकता को दुनिया को दिखलाये हम सभी पांच अप्रैल रविवार रात्रि नौ बजे कुछ नौ मिनट निकालें हम सभी इस काल मयि कोरोना वायरस…

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आओ दीया जलाएँ

आओ मिलकर कोरोना रूपी वायरस को भगाएँ क्युं न आज फिर एकबार मिलकर हम सभी दीया जलाएँ ॥ त्यौहारों का मौसम है फिर से हम दीवाली मनाएँ दीपों की रोशनी से आज फिर घर सजाएँ ॥ आओ मिलकर फिर दीया…

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मैं गॉव लौटना चाहता हूं

जहां खुली आंखें मेरी, जहां मैंने चलना सीखा, बापू की वह स्नेही अंगुलियाँ, जिसे पकड़कर चलना सीखा, जिस का आशीर्वाद सदा सर पर मेरे, उस माँ के अंक में सोना चाहता हूं, ऐ जिंदगी थोड़ी मोहलत दे मुझे, मैं घर…

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