तुम समझती क्यों नहीं हो
आदत-सी हो गई है मुझको तेरी तुम समझती क्यों नहीं हो मिलना है हमारा बेहद जरूरी तुम समझती क्यों नहीं हो सच में तुम हो गई हो मेरी मजबूरी तुम समझती क्यों नहीं हो सर्द मौसम की गुनगुनी धूप-सी हो…
आदत-सी हो गई है मुझको तेरी तुम समझती क्यों नहीं हो मिलना है हमारा बेहद जरूरी तुम समझती क्यों नहीं हो सच में तुम हो गई हो मेरी मजबूरी तुम समझती क्यों नहीं हो सर्द मौसम की गुनगुनी धूप-सी हो…
पूजा कुमारी साव इस कविता में जिंदगी और साँसों की चर्चा करती हैं। साँसें चल रही है और यह जिंदगी भी आगे बढ़ रही है। जब तक साँसे चलती है, ये सांसे गर्म होती है शरीर और मस्तिष्क, बुध्दि अभी,…
प्रेम की परिभाषा अनेक हो सकती है किन्तु सार एक ही है। कलमकार पूजा कुमारी साह ने इन पंक्तियों में ऐसे प्रेम के बारे में बताया है जो अनछुआ है, मग़र सच्चा है! मीरा की तरह.... मत पूछो मैं कैसी…
वो मुझे अपना बताकर चला गया मेरी मुश्किलें बढ़ा कर चला गया।। क्या नाम दूं मैं ऐसे शख्स को जो मिला कर छुड़ाकर कर चला गया।। मतलबी पराया कहूं भी तो कैसे वो एहसास अपना दिलाकर कर चला गया।। मैं…
कलमकार कुलदीप दहिया की एक कविता पढिए जिसमें उन्होने इंसानी फितरत और मौजूदा हालातों को चित्रित किया है। हैं चारों ओर वीरानियाँ खामोशियाँ, तन्हाईयाँ, परेशानियाँ, रुसवाईयाँ सब ओर ग़ुबार है! आ अब लौट चलें चीत्कार, हाहाकार है मृत्यु का तांडव…
फूल भी बोलते हैं, उनकी भावनाओं को जानने के लिए उनसे बातें करनी होतीं हैं और यह काम कवि को ही सूझता है। कलमकार रोहिणी दूबे ने पुष्पों की भावना इस कविता में वयक्त की है। देखों न!मैं कितनी प्यारी…
कलमकार मुकेश बिस्सा नारी शक्ति के सम्मान में यह कविता प्रस्तुत कर रहें हैं, आइए इसे पढ़ें और अपनी प्रतिक्रिया दें। अपनी इच्छाओं आकांक्षाओ का दमन करती नारी हर पल घुटकर हंसी का लिबास ओढ़ती है नारी।सहनशीलता और कर्तव्यपरायणता की…
बचपन गुजार के जवानी पाया समाज के रीति को देखकर रात दिन को एक किया, अब क्यों करने लगे तपस्या? सम्मान पाने के लिए? खून पसीना एक किया एक पल भी नहीं बर्बाद किया जितने भी तुमको दर्द मिले, उसको…
आपने भी उस वक़्त का एहसास किया होगा जब मन को ढेर सारी खुशी प्रतीत होतीं हैं और हम मन ही मन गुनगुना उठते हैं। कलमकार विनीत पाण्डेय लिखतें बिन - गाये भी गाया तुमको। बिन गाये भी गाया तुमको…
कर्म ही आपको महान बनाता है। आप बहुत कुछ अच्छा कर सकते हो बस अपने मन मस्तिष्क में ठान लेने की देर है। शिम्पी गुप्ता की यह कविता आपको कर्म के प्रति प्रेरित अवश्य करेगी। हे मनुष्य! हैं तूणीर में…
कलमकार शीला झाला 'अविशा' ने एक बेटी के बोल को अपनी इस कविता में लिखा है। बेटी माँ से बहुत सारी बातें और अपना दुःख बयां करना चाहती है लेकिन... मां! मै तेरी नन्ही गुड़िया हां मैं ही तो हूं…
इस संसार में हर इंसान को चिंता ने ग्रसित किया हुआ है फिर भी हम कहते हैं कि चिंता मत करो। कलमकार मुकेश बिस्सा ने इसी चिंता को विस्तार में अपनी कविता में बताया है। हम सभी की जिंदगी में…
तुमसे इश्क़ है मुझे मैं बस इतना जानती हूँ तुम्हारे सवालो के जवाब में मैं अक्सर ख़ामोश हो जाती हूँ जाने दो छोड़ो यार कहकर बात टाल देती हूँ हाँ थोड़ी बेपरवाह हूँ मगर, फ़िक्र है तुम्हारी गुस्सा करती हूँ…
कलमकार देवेन्द्र पाल चाँदनी रात की एक मुलाकात को अपनी कलम से रेखांकित कर इस कविता में चित्रित करने का प्रयास किया है, आप भी पढें। पलकों पर बिजली चमकेगी चाँदनी रात मे बरसात होगीहां यकीं है मुझको जब मेरी…
आज अगर अंधेरा है, निश्चय उजाला भी आएगा। दुःख की बादशाहत सदा न रहेगी, वक्त सुखवाला भी आएगा। फिर से किवाड़ खुलेंगे सारे , हृदय हर्ष-उमंग आएगा। शमा भी रोशन होगी फिर से, महफ़िल में रंग आएगा। शायद तंग आ…
देख उन्हें सड़कों पर, मैं व्यथित हो जाती हुं, दशा देखकर उनकी ऐसी, मैं लाचार हो जाती हुं। वायरस एक प्लेन से आया, प्लेन वाले बचे रहें, ऐसा क्युं हर बार ही होता, गरीब ही मरते रहे। ऊपर वाले तु…
हाथों में सामान थामे कंधों पे बच्चे साधे बीवी को साथ में ले निकल पड़ा है अपने गांँव की ओर नंगे बदन, नंगे पाँव है आँखों में तो बस गाँव है। साथ है पानी और कुछ रोटियाँ ना जाने को…
इतना कमजोर नही समझो की सिर पैर सवारी हो जाए अनुशासन इतना मत लांघो की दुश्मन भारी हो जाए भूखे भी है प्यासें भी है बेबस है लाचार भी है पर इनको इतना मत रोको की ये मजदूर भी ब़ागी…
निरालंब तुम रहना सीखो औरों का क्या दम भरना अपने नैया खुद हीं खेवो आत्म निर्भर जग में रहना औरों के बल पर जो बढ़ता शक्तिहीन कहलाता है जंगल में बोलो गीदड़ कब सिंहों सा आदर पाता है अपने भरोसे…
वो घर बनाते हैं, तब रहते हैं लोग मकान में कोई उधार नहीं देता अब उनको दुकान में क्या खबर थी उन्हें कि इतना सितम होगा कि हम आएंगे ही नहीं अब पहचान में ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए लोग…