मिलकर देश बचाते रहना

जख़्मों को सहलाते रहनाअपनापन दिखलाते रहनाआज जरूरत है तुम सबकीमिलकर साथ निभाते रहना..।। आज वक़्त नाजुक है लेकिनधैर्य और साहस मत छोड़ोहर भूखे को मिले निवालामानवता दिखलाते रहना..।। आज परीक्षा है तुम सबकीहोना है उत्तीर्ण तुम्हेंमानवता की बने मिसालेंतुम बस…

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एक शख़्स

कलमकार स्वयं को नादान कलम कहते हैं। इस कविता में वे वादियाँ, बर्फ़ का पानी और नादान कलम की कहानी लिख रख रहे हैं। वो पूछती थी मैं बताता था जिन्दगी को दर्द जिन्दगी के सुनाता था। वो मुस्कुराती थी मंद…

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किताबें

कवि मुकेश अमन अपनी इस रचना में किताबों का महत्व बता रहे हैं। आपका जीवन सुंदर और सुखद बनाने में बड़ी भूमिका निभानेवाली इन किताबों से नजदीकियां बढ़ाइए। गजल, कहानी, नाटक, नज्में, गीत किताबें गाती है । यही किताबें अड़ी-खड़ी…

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धरती का चाँद

कलमकार संजय वर्मा सौंदर्य का वर्णन अपनी इस कविता में कर रहे हैं। खूबसूरती की चाँद से तुलना करती हुई कुछ पंक्तियाँ पढ़ें। धरती का चाँद दूधिया चाँद की रौशनी में तेरा चेहरा दमकता नथनी का मोती बिखेरता किरणे आँखों…

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मेरे अंतस

हमारे तुम्हारे मन में न जाने कितनी यादें, कल्पनाएँ और इरादे भरे पड़े हैं। कलमकार नमिता प्रकाश ने इस कविता में इसी संदर्भ में अपने भाव प्रकट किए हैं। तेरे अन्तसमेरे अन्तस,कुछ औंर नहीकेवल छवि है।जो गुजरे वो दिन सुनहरे,उज्जवल…

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कुछ तो परिवर्तन

कलमकार मुकेश बिस्सा लिखते हैं कि अब तो परिवर्तन हो ही जाना चाहिए, जहाँ उनकी कल्पना के अनुसार एक नई दुनिया और उत्तम स्वाभाव वाले लोगों का साथ मिले। कुछ तो परिवर्तन कहीं कुछ तो परिवर्तन चाहिए अलग सी एक…

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कोरोना: एक अदृश्य शत्रु

संघर्षरत सम्पूर्ण जग, तनिक ठहर जाइए योद्धाओं की पुकार है ना घबराइए अदृश्य है शत्रु यह संभल जाइए अपने लिए ही सही मन की चेतना जगाइए भविष्य के लिए पहले वर्तमान चाहिए अदृश्य है शत्रु यह संभल जाइए देव से…

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कोरोना काल में कुछ लोग

वो जो कहते थे वक़्त नहीं मिलता आजकल अपनों के संग वक़्त बिता रहे है। के बहुत खुश है वो नन्हा ये देख कर उसके हिस्से का सारा प्यार उसे मिल रहा है। क्यों की मां आज कल दफ्तर नहीं…

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श्रमिक न घबराये श्रम से

श्रमिक! न घबराये, श्रम से मेहनत करता है दम-खम से। फिर! चूल्हा कल जलेगा घर पर चिन्ता उसको यही सताये। श्रमिक! श्रम की गर्मी से पिघला लोहा आकार है देता। खेतों में, कारखानों में खून जलाता पसीना बहाता। सुस्ता ले…

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ऐ ख़ुदा तू है कहाँ

कलमकार मनीष दिवाकर आजकल के आपराधिक माहौल से दुखी होकर यह कविता लिखतें हैं और खुदा से कुछ सवाल कर रहें हैं।   ऐ ख़ुदा तू है कहाँ, क्या-क्या जमीं पर हो रहा भेड़िये सा मन क्यूँ इंसान लेकर ढ़ो…

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तुम दुःख मेरे नाम करो

कलमकार विजय कनौजिया कहते हैं कि तुम दुःख मेरे नाम करो। प्रेम में कभी दुख न देना, वहाँ केवल खुशियों का आशियाना होना चाहिए। दुख आएँ भी तो मिल बाटकर उन्हें गायब कर देना चाहिए। प्रथम प्रेम का प्रथम निवेदन…

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हार और जीत

जीवन में हार और जीत किस कद्र जरूरी होती है यह सभी जानते हैं लेकिन हारना कोई नहीं चाहता। कलमकार मुकेश बोहरा अमन की कविता में हार और जीत का वर्णन पढ़ें। जिनके थे, बेजान इरादें, वो बाजी फिर हार…

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वास्तविकता

जो दिखाई देता है वह वास्तविकता नहीं है, वास्तविकता जानने के लिए आपको उस इंसान व चीज़ को बहुत करीब से समझना होगा। कलमकार दिव्यांगना की एक कविता पढ़िए जो इस विषय और जानकारी प्रदान कर रही है। तुम अगर…

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सीता की अग्नि परीक्षा… कब तक

माता सीता के प्राकट्य दिवस पर विशेष सीता की अग्नि परीक्षा... कब तक नारी के आत्मसम्मान पर, उठते रहेगें। प्रश्न? शायद जब तक। सीता की अग्नि परीक्षा ...तब तक। जब तक नारी तुम मूक रहकर, सब सहती जाओगी। भीख में…

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वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा

वो तुम्हें हर जगह दिख जाएगा ग़ौर से देखोगे तो भगवान नज़र आएगा कहीं खेतों में घूप की चादर ओढ़े हुए तो कहीं सड़को के सन्नाटे में लेटे हुए कहीं अन्न उगाते हुए तो कहीं इमारतें बनाते हुए वो तुम्हें…

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क्योंकि मज़दूर हूँ

दुनिया के सामने तस्वीर हमारी सब के जुबा पे नाम हमारी फिर भी ना कोई पहचान हमारी क्योंकि मैं मजदूर हूं दुनिया हो गई एक साथ आज सबके आगे फैला हाथ ऐसी हो गई दशा हमारी क्योंकि मैं मज़दूर हूं…

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श्रमिक

व्यथीथ हो चला था हृदय में अपने अनंत पीड़ा लेकर वह अपने घर को चला था क्या करता इस बड़े से शहर में शहर के व्यवहार से, वह कुपित हो चला था ऐसा नहीं था कि नहीं थे अच्छे लोग,…

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श्रम दिवस

कामयाबी का राज मेहनत है यह खुदा की बख़्शी हुई नेमत है करें श्रम जब तक जीवन है यही जीवन का मूल मंत्र है आज का काम कल पर मत छोड़ो श्रम ही सफलता का लक्षण है हर पल महत्वपूर्ण…

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मज़दूर है बहुत मजबूर

समाज का एक महत्वपूर्ण अंग है ये जिसे हम मज़दूर शब्द से नवाज़ते है, कई क़िस्मों का है ये मज़दूर। बस नज़र आपकी है कि किस मोड़ पर वो सोच बैठे कि हाँ ये है मजबूर माफ़ी चाहूँगा 'मज़दूर'। आइए…

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शाख से पत्ते टूटते रहते हैं

भारत ने दो दिन के अंदर अपनी दो बेहतरीन शख्सियत खो दी हैं। कल इरफ़ान ख़ान जी और आज ॠषि कपूर जी को.... दोनों महान कलाकारों को भावपूर्ण श्रद्धांजलि। शाख से पत्ते टूटते रहते हैं, एक दूसरे से छूटते रहते…

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