मैं मजदूर
मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ…
कोरोना कह रहा-मरो ना, विकास की अंधी रफ्तार के आगे, कहां सोच पाया था इंसान कि जीवन का मतलब बारुद व जैविक हथियार नहीं होता, न ही इंसान से नफरत, न उच्च, न नीच, क्योंकि कोरोना ने सबको बना दिया…
मैं तो चला था फ़क़त अपनी जिम्दारियों से लड़ने, क्या पता था जिंदगी और मौत से लड़ना पड़ जायेगा, कहता था जो अपनी जान से भी प्यारा मुझे, वो एक बीमारी के चलते मेरी परछाईं से भी डर जाएगा, पर…
अख़बारों की फिर सुर्खी मिली। आज फिर एक गरीब की अर्थी चली। ओढ़ अरमानों की बलि। एक गरीब की अर्थी चली। आखिर क्या जल्दी थी, दुनियां छोड़ जाने की। सायद कफ़न के महंगे हो जाने की। थी, पहले से महंगाई…
आपस में अगर अपना जिन्दा होना है कोरोना के माहौल में हिम्मत कायम हो भरोसा दिलो में जोड़े रखना है दिलों में अपनी हुकूमत कायम हो मन मेरा करता है बगावत कई दफा हर पल इन्कलाब की सूरत कायम हो…
कैसी अबकी साल है ये कोरोना काल है कैसे करे सामना न हथियार न ढाल है दुनिया का जो हाल है ये कोरोना जाल है बच गए तो काल (कल) है नहीं तो पका काल है हम डाल डाल है…
आधी रोटी भी नहीं नसीब जिस इन्सान को उसका नाम मजदूर है। शायद, इसलिए ठूस दिए जाते हैं ट्रकों में भर-भर या, छोड़ दिए जाते हैं भटकने को भूखे-प्यासे रेंगने को तपती धरती। एक मजदूर का खटिया, बिछौना, बर्तन बक्सा-पेटी,…
कुलबुलाती है, भूख बिलबिलाती है। ठंडी रातों में भी जेठ सी जलाती हैं। अपनी मजबूरी के किस्से को, मासूम आँखों से झलकाती है।। नहीं कोई मजहब, ना कोई रब इसका, ना कोई धर्म, ना कोई जात इसका। भूखा इंसान जूठा…
देखा नही खुदा कही घूमा मन्दिर मस्जिद गुरूद्वारे पता ना था वो पास है मेरे हम जीते है जिनके सहारे निकल पड़ते है वो हर सुबह अपने कर्म निभाने कुछ नही है अभिलाषा उनको वो जान बचाते हमारे पॉव पखेरना…
किसी भी आपदा, महामारी का सबसे ज्यादा प्रभाव कमज़ोर और गरीब वर्ग पर ही होता है। कोरोना जैसी महामारी जिसे लेकर तो विदेशों से आए अमीर मेहमान थे लेकिन इस महामारी के बाद भारत में लोकडाउन होने से सबसे ज्यादा…
कलमकार संदीप सिंह चाहत की भावना बता रहे हैं। कभी-कभी बोलने को तो बहुत होता है किंतु शब्द ही समाप्त हो जाते हैं मेरे लफ्जो से अब तुम क्या-क्या पूछोगीमेरा हर ख्याल तुम्हारा, मेरी हर सांस तुम्हारी,मेरी आवाज तुम्हारी, मेरी…
कलमकार अनिरुद्ध तिवारी जीवन की उलझनों का जिक्र अपनी कविता में करते हैं। हर इंसान कई तरह की कठिनाइयों से जूझ रहा होता है और इसका पूर्ण ज्ञान सिर्फ और सिर्फ उसे ही होता है। कुछ दिनों सेबड़ी उलझन में…
अवनीश कुमार वर्मा ने इस कविता में एक बच्ची के सीखने की ललक और उसके खेल के अंदाज को चित्रित करने का प्रयास किया है। वह लड़की डॉक्टर साहिबा का अनुकरण करती है। रोज देखते हैं लड़की न्यूज़ हर दिन…
इंसान बन रहा है कठपुतलियाँ। इंसान बन रहा है कठपुतलियाँ। जैसे कठपुतली करती है नर्तन दूसरे के इशारों पर। टिका है उसका जीवन दूसरों की उंगलियों के सहारे। साँस लेती है वो अपने शरीर पर बँधे हुए धागों से और…
मत पगला ऐ इंसान, खाक में मिल जाएगा तेरा स्वाभिमान, ये जवानी... ये ताक़त.. ये दौलत.. सब कुदरत की इनायत है। तू मर के संसार से चला जायेगा, इस धरा का इस धरा पर सब धरा रह जायेगा मैंने हर…
चलती का नाम गाड़ी है ऐसा अक्सर सुना होगा। दरअसल यह बात जीवन पर भी लागू होती है। जीवन के सफर को बताने का प्रयास कलमकार रोहित यादव ने इन पंक्तियों के जरिए किया है। जिन्दगी चल रही है, जिन्दगी…
कलमकार अमित चौधरी भी पुरानी यादों की ही कुछ झलकियां इस कविता दर्शाईं हैं। आइए हम भी अपनी कुछ यादें इस कविता को पढ़ जीवंत करते हैं। बिसरते नहीं है, दिन-रात मेरेबचपन की बातें, खेल-खिलौनेंखेलते फिरते, साँझ-सवेरे।अम्मा का आँचल, ममता…
न भूली जाने चीजें ही याद बनती हैं और इन यादों को कोई मिटा भी नहीं सकता है। कलमकार हेम पाठक लिखते हैं कि किसी का मुस्कुराना भी लोगों को याद आता है। मुझे याद है तेरा मुस्करानालहरा के चलनाबल…
आजकल विद्यार्थी लिखने में वर्तनी की अशुद्धियाँ बहुत करते हैंहम इस मंच के माध्यम से हिंदी शब्दों के बुनियादी अंतर को आज की युवा पीढ़ी को बताने का प्रयास करेंगे। 1. स्रोत औऱ स्तोत्रस्रोत- (स् +र+ओ+त) इसका अर्थ है माध्यम,…
छायावाद के प्रमुख स्तंभ सुमित्रा नंदन पंत साहित्य क्षेत्र मे आप का योगदान अनंत सौम्य वयक्तित्व के स्वामी स्वभाव से संत बचपन से कविता की और झुकाव विद्वान अत्यंत कौसानी उनका जन्मस्थान सौष्ठव शरीर घुंघराले बाल, आपकी पहचान आप के…