कोरोना संबंधित लघुकथाएँ
इमरान संभलशाही रिश्ते अपने अपने गाँव लौटने के लिए लोगो द्वारा सभी सामान सहेजे जा रहे थे। सभी लोगो मे जल्दी जल्दी सामान बटोरने की ललक साफ देखी जा रही थी। एक तरफ जुम्मन मियाँ अलग बौखलाहट में चिल्लाए पड़े…
इमरान संभलशाही रिश्ते अपने अपने गाँव लौटने के लिए लोगो द्वारा सभी सामान सहेजे जा रहे थे। सभी लोगो मे जल्दी जल्दी सामान बटोरने की ललक साफ देखी जा रही थी। एक तरफ जुम्मन मियाँ अलग बौखलाहट में चिल्लाए पड़े…
आज जब हम बालक-बालिका में समानता की बात करते हैं तो क्या यह अपवाद होता है। कलमकारों को इस विषय पर लिखना ही पड़ता है। हम सभी समाज का हिस्सा हैं, आइए एक बेहतर कल के निर्माण की ओर अग्रसर…
और कब तक कैद रहेंगे हम? आज अहसास हो रहा है, पिंजरों में बंद पंछियों का मर्म, महसूस करते हो उनकी छटपटाहट? अब करो, कैद होने का दर्द क्या होता है, जानों सच ही कहा है किसी ने, जा तन…
कहां खो गया यह खुशियों का संसार नहीं कोई सुनता है उस दिल की पुकार जिन्होंने जोड़े तेरे दर पे दोनों हाथ माथा भी टेके तेरे द्वार तेरे ऊपर किया पूर्ण विश्वास दिया तुझे ऊंचा सम्मान कहां खो गया यह…
चाइना तेरे कोरोना ने, ये क्या दहशत फैलाई है। याद रख परास्त करने की, हमने भी कसमें खाई है।। तेरे कोरोना सा इस जग में, दूजा कोई शैतान नहीं । हम ठोकर मार पछाड़ेंगे, रहेगा नामो निशान नहीं। इस वायरस…
कितना हाहाकर है सितम ढाने को जो जन्मा है लाइलाज़ कोरोना! सक्षम है, नष्ट कर देने को समस्त मानव जाति। चिंतित है सम्पूर्ण विश्व इस भयावह स्थिति से बस आशा की एक किरण है सोसल डिस्टेनसिंग तो आओ, आज थोड़ी…
कह गये राम सिया से- ऐसा कलयुग आयेगा, सांस-सांस पर टैक्स लगेगा, बस लट्ठों का उपहार मिलेगा। भोजन का अम्बार तो होगा, पर दाने-दाने को मनुज तरसेगा। भीषण महामारी में भी भ्रष्टाचार पनपेगा। सांपों में जहर न होगा पर आदमी…
कोरोना जैसी वैश्विक महामारी में आज हर कोई असुरक्षित महसूस कर रहा है। लोगों को घर में ही स्वयं को कैद होने और अपनो से दूर रहने को विवश होना पड़ा है। आज इस महामारी से अपने देश में अगर…
कलमकार कवि मुकेश अमन मीठा बोलने की सलाह इस कविता में दे रहें हैं। इसका प्रयास तो कीजिए जीवन में अनूठा परिवर्तन महसूस होगा और लोगों का व्यहार भी आपको पसंद आएगा। मीठा बोलो, मधुर बनो,सबसे मीठी, बात करो।मिले बाद…
कलमकार महेश 'माँझी' ने महान शख्सियत दशरथ मांझी के बारे में चंद पंक्तियाँ लिख प्रस्तुत की हैं। प्रेम ने पहाड़ का ह्रदय चीर डाला, मेने देखा ऐसा प्रेम करने वाला। राह के मझधार का वो माँझी कहा गया, प्रेम की…
बनारस की गली में हुए प्रेम को कलमकार आलोक कौशिक अपनी इस कविता में लिख रहे हैं। बनारस की गली मेंदिखी एक लड़कीदेखते ही सीने मेंआग एक भड़की कमर की लचक सेमुड़ती थी गंगादिखती थी भोली सीपहन के लहंगामिलेगी वो…
मैं मजदूर फौलादी इरादों वाला चुटकियों में मसल देता भारी से भारी पत्थर चूर-चूर कर देता पहाड़ों का अभिमान मेरे हाथ पिघला देते हैं लोहा मेरी हिम्मत से निर्माण होता है ऊँची इमारतों का मेरी मेहनत से बाँध देता हूँ…
जिंदगी सड़को पर बेहाल पड़ी है। जो बिना सुख सुविधा के खुश रहा करते थे आज सड़को पर इन्तहां दे रही हैं। जो भड़ता सभी का पेट यहां-वहां पर, आज तड़पते गां जा रही हैं कुछ सपनों की चाहत में,…
देश लड़ रहा है हम जरूर जीतेंगे, कोरोना जैसी महामारी से, हर वो इंसान कोरोना योद्धा है जो अपने परिवार को बचा रहा है, देश लड़ रहा है, हाथ मिलाने व गले मिलने की परंपरा अब खत्म हो रही है,…
कुछ दिन पहले यह समाचार पढ़ कर मेरा मन द्रवित ह़ो गया कि मजदूरो ने आगरा से लखनपुर तक पहूंचने का भारी भरकम किराया अदा किया क्या इंसान अपनी इंसानियत खो चुका है कि इस त्रासदी मे भी लूटपाट और…
ये दौर अभी कुछ ऐसा है, अब खुद पे भरोसे जैसा है, ये मौक़ा मिला है हम सब को, अपना कुछ हुनर दिखाना है, विदेशी समान तिरस्कृत कर, उनको अब पीठ दिखाना है, अपने आन्तरिक जज़्बातों को, कुछ ऐसी राह…
महान परियोजनाए, महान कार्य के लिए थे बने, स्वर्णिम चतुर्भुज, दिन रात दौड़ने वाले वाहन धीमे पड़ गए मजदूर उससे ज्यादा सफर कर गए धूं धूं कर जलने वाला ईंधन पेट्रोल, डीजल, गैस सब टैंक मे धड़े के धड़े रह…
मजदूर हैं भले वो मजबूर बो नही है गलती है रोटियों की मगरूर वो नहीं है मरते है वो सड़क पर सरकारी आंकड़ों में देकर के चंद पैसे भिखमंगे वो नही है हर अमीर से छले वो पैदल ही तो…
मैं एक मजदूर हूं मैं ठोकर खाने को मजबूर हूं दो रोटी पाने की चाह में मैं घर परिवार से दूर हूं जी हां मैं एक मजदूर हूं सरकारें आती रही जाती रही कठिनाइयां हमारी और बढ़ाती रही अपनी आउंछी…
देख पीड़ा श्रमिक की मन रहा है डर स्याह हर उम्मीद है जाए तो किस दर रेल की पटरी हो या हो कोई सड़क हो रक्त रंजित चीखती है सभी डगर धैर्य की भी सीमा, होती है संसार में पार…