साकेत हिन्द स्वरचित चंद पंक्तियाँ
आओ हम भी मुसाफिर बन जाएँ, इस मंज़िल-ए-ज़िंदगी के।
आओ हम भी मुसाफिर हो जाएँ, इस दौर-ए-ज़िंदगी के।।
कोई और मिले या न मिले, हम-तुम हैं काफ़ी।
करेंगें पूरा हम ज़रूर, सुहाने सफ़र ज़िंदगी के।।
करेंगें सामना हम, आती हुई हर मुसीबत का।
मिलकर हम मिटा देंगे, सारे ही गुम ज़िंदगी के।।
न दुखाएंगे दिल किसी का, पूरे ज़िंदगी के सफ़र में।
दिल की ही बात मानकर, जिएँगे हम दिन ज़िंदगी के।।
है मुझे उम्मीद तुमसे, दोगे साथ आखिरी दम तक।
अगर साथ छूट ही गया, तो साँसें भी ज़िंदगी की रूकें।।
~ साकेत हिन्द