नीर अब नीर नहीं रहा रग में

नीर अब नीर नहीं रहा रग में

नीर अब नीर नहीं रहा रग में,
विषाक्तता फैल रही तीव्र रसद में
मानव मन को वशिकरण नहीं
बिन पानी सब सून कहे जग में।

अग्रज जल देखें नद में,
हमने देखा टब और नल में
भावी पीढी के लिए प्रश्न है
क्या वह देखेंगी इंजेक्शन में।

पेड़ तो हैं पर आधुनिकीकरण में,
सभी मस्त हैं स्व लगन में
प्रकृति से किसी का वास्ता नहीं
मिट रहे हैं सब अंत: कलह में।

उष्ण की सत्ता हैं चरम में,
शितलन ज्ञान हैं गहन में
मृत्यु का सिलसिला पर थमता नहीं
मस्तिष्क पड़ गई हैं अचरज में।

मानव संग खग हैं त्रस्द में,
जाएं तो जाएं किसके शरण में
नदी सुखी, सर सूखा झरना दम तोड़ रहा
हमारा क्या गुनाह गलती सब हैं रब में।

~ दिनेश कुमार

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.