किसी को कमजोर आंकना न्यायसंगत नहीं है। इन पंक्तियों को पढें जिनमें अमित मिश्र ने अपने विचार व्यक्त किये हैं।
मेरी कमजोरी मत समझ मैं शांत बैठा हूँ।
हौसले के तरकश में लिये ब्रम्हास्त्र बैठा हूँ।।
मेरे एक तीर से तेरा कुल सिमट सकता है।
शुक्र मना अभी हाथों में लिये शास्र बैठा हूँ।।
सोने चांदी की थाली का मुझे शौक नहीं है।
मैं आज भी हाथों में लिये तांब पात्र बैठा हूँ।।
सदियों से न मिटा सका कोई मेरा अस्तित्व।
हाथों में परशु दिल में लिये तूफान बैठा हूँ।।
झुक जाते हैं अक्सर सभी के शीश मेरे आगे।
हर गुण में निपुण, ज्ञान अपार लिये बैठा हूँ।।
दया, क्षमा, शील, धैर्य, परोपकार मेरे हैं गुण।
दुष्ट और अधर्मियों का मैं संहार किये बैठा हूँ।।
~ अमित मिश्र