किसी का इंतज़ार करना बहुत मुश्किल होता है लेकिन कभी-कभी इंतज़ार करना अच्छा लगता है।
रज़ा इलाही की एक गजल- एक इंतिज़ार
नज़र उनसे मिलती नहीं
तबीयत अब लगती नहीं
गुलचीं पुछे बाग़ में क्यों आते नहीं
मैं कहूँ, आने की अब वजह नहीं
खबर उनकी मिलती नहीं
ख़ूनाब अब थमती नहीं
कोई कहे सर-ए-बाम चाँदनी का मंज़र
मैं कहूँ, ए चाँदनी क्यों जो तू दिखती नहीं~ रज़ा इलाही
गुलचीं: gulchii.n = flower gatherer;
ख़ूनाब: khunaab = tears of blood;
सर-ए-बाम: sar-e-baam = on top of the terrace;
मंज़र: manzar = scene, view