बरसात की अहमियत सूखाग्रस्त क्षेत्र अधिक समझते हैं, जहाँ बूढ़े-बच्चे सभी को बादलों की उलटी चाल रास नहीं आती है और वे मेघों को पुकारते हुए कहते हैं- “बादल बाबा! अब घर आओ”। मुकेश अमन की कविता में ऐसा ही एक दृश्य उभारा गया है।
प्यासी धरती प्यासा अम्बर,
अब गाएं बस पानी-पानी।
जंगल-जंगल घूम रहे सब,
माटी नाहाएं चिड़िया रानी।।कब आओगे उमड़-घुमड़ कर,
अपने कर जलधारे लेकर।
हरियाली के मधुर संदेशे,
खुशियों के जयकारे लेकर।।बादल बाबा अब घर आओ,
संग में लेकर नई कहानी।
प्यासी धरती प्यासा अम्बर,
अब गाएं बस पानी-पानी।।हमें पता है कल वाले दिन,
बहुत भुलक्कड़ हो तुम बाबा।
भूल-भूलाकर आगे-पीछे,
ढ़ल जाते हो काशी काबा।।सुख गए जो ताल-सरोवर,
मांग रहे है मीठा-पानी।
प्यासी धरती प्यासा अम्बर,
अब गाएं बस पानी-पानी।।रेशम वाले ऊनी बोरे,
खुशियों से तुम भर लाते हो।
नभ में चमक चांदनी, रंगत,
जब तुम अपने घर आते हो।।क्या भूल गए हो हम लोगों को,
दुनिया के दातार, ओ! दानी।
प्यासी धरती प्यासा अम्बर,
अब गाएं बस पानी-पानी।।~ मुकेश बोहरा ‘अमन’
#SwaRachit108