मेरी माँ

मेरी माँ

इस दुनिया में सबसे सुंदर रिश्ता होता है माँ का बाकी सारे रिश्ते स्वार्थ से लिप्त होते हैं। बस एक माँ ही है जो बिना किसी स्वार्थ के अपना प्रेम बरसाती है। समीक्षा सिंह ने ‘मेरी माँ’ कविता में माँ के प्रति अपने भाव प्रकट किए हैं-

अलौकिक प्रेम की गहराइयों की
न है कोई शक्ल सूरत,
वह है मेरी माँ ममता की मूरत।
सूक्ष्म हो जाती है जन्नत सारी,
जिनसे है घर में खुशहाली।
प्रथम इल्म है जिनसे पाई
वह है मेरी माँ कहलाई।

सूत्रधार है वह परिवार की,
पूरी करती है वह इच्छाएँ भरमार सी।
भोली सूरत, निश्छल हृदय, नेक कर्म
यही है मेरी माँ का धर्म।
प्रथम पूज्य है जन्मदाता,
तब आते हैं भाग्य विधाता।
बच्चों में बसती है जिसकी जान,
वह है मेरी माँ की पहचान।
प्रथम इल्म है जिनसे पाई
वह है मेरी माँ कहलाई।

बहुत बुरे थे उसके अतीत,
किया था हँस कर माँ ने व्यतीत।
क्रोध से जब उनकी भौहें तन जाती,
नजरें मेरी उनका हृदय पढ़ जाती।
उनकी रूसवाई में भी है हमारी भलाई।
हर पल जिनसे है हमें इतनी उम्मीद,
तो दुनियाँ क्यों हो जाती है दूसरों की मुरीद?
वेदना में जिसकी याद है आई,
वह है मेरी माँ कहलाई।

~ समीक्षा सिंह

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/379446536295858

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