कलमकार खेम चन्द ने आज अपनी एक रचना ‘नफ़रतों के मीनार’ प्रस्तुत की है। रिश्तों में गलतफहमियां अक्सर दूरी/ नफरत का कारण बन जाती हैं।
नफरतों के मीनार बनाते रहे
उसने लूटी महोब्बत और हम लुटाते रहे।
कभी मिलेगी खुशी गमों के दरमियान,
ये सोच कर हम महोब्बत निभाते रहे।।
हर रिश्ते को उसकी महोब्बत में ठुकराते रहे,
मिले जो भी गम उनको सजाते रहे।
हर महफिल में वो याद आते रहे,
जब छलके आंसू हम भी बहाते रहे।।
नफरतों के मीनार बनाते रहे …..
गुजरे लम्हें याद आते रहे,
हर चौराहे पर वो हमको सताते रहे।
रोशनी थी और हम दीये जलाते रहे,
रूख हवा का उन्हें बुझाते रहे।।
नफरतों के मीनार बनाते रहे ….
तोडो न रिश्ता ये हम समझाते रहे,
वो हर याद को मिटाते रहे।
बुझी इश्क की आग हम सुलगाते रहे,
आंधी तुफान बनकर वो उसे बुझाते रहे।।
नफरतों के मीनार बनाते रहे ….
हर सजा हम महोब्बत में पाते रहे,
थे जो कभी हमारे वो जाते रहे।
हर गमों को आंसुओं में बहाते रहे,
हम कुछ भी नहीं उनके बिना वो मुस्कुराते रहे।।
नफरतों के मीनार बनाते रहे ….
~ खेम चन्द
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