नियमित पाठक निशा पाण्डेय ने यह कलमकार की रचना साझा कर बताया है-
“उम्र भर चोट सहना न आसान है: यह कविता मेरी रचना नहीं है, इसे मैंने एक विद्यालय की किसी पत्रिका में पढ़ा था। इसके रचयिता का नाम तो याद नहीं है लेकिन कविता मुझे काफी अच्छी लगी। यदि आप इसके रचनाकार के बारे जानतें हों तो अवश्य बताएँ।” ~ निशा पाण्डेय
रात दिन याद तेरी घिरी इस तरह,
भूल जाना तुम्हे अब न आसान है।
मेरी पलकों में सैलाब तिरने लगे,
राह भी देख पाना न आसान है।
तुम गये मुझसे दामन बचा कर गये,
दर्द सीने में लेकिन जगा कर गये।
किस्ती मैंने उम्मीदों की पायी जो थी
उम्रभर के लिए डगमगा कर गये।
जलजला छा गयी भूमि काँपने लगी,
पर मेरा पाँव न रुकना आसान है।तुम गये इसकी चिंता न है कुछ हमें,
किन्तु वादे से हटना न अच्छा हुआ।
चाँद तारो के आगे शपथ तुमने ली,
पर इरादे से कटना न अच्छा हुआ।तुम भले डिग गये अपने अनुबंध से,
पर मेरा सत्य टलना न आसान है।
एक मुददत हुयी जब से तुम दूर हो,
पर मिलन-आस है साथ आठों पहर।आँसुओ का बिखरना न निसार है,
पाँव तेरे कभी तो मुड़ेंगे इधर।
चोट एक दिन की हो तो गनीमत जरा,
उम्र भर चोट सहना न आसान है।
~ अज्ञात
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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