कलमकार रज़ा इलाही के अनुसार कुछ तुम कहो कुछ हम कहें- इससे किसी भी प्रकार की गलतफहमी नहीं रहेगी और आपस में प्रेम पनपता रहेगा।
चाहतों को एक नया मोड़ दें
वादों को एक नया हर्फ़ दें
दिल की सदाओं को यूँ न छोड़ दें
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहेंबस यूँ कहें के गुल खिले
अब यूँ हँसे के घटा घिरे
कुछ यूँ चले के सावन गिरे
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहेंछोड़ के वक़्त के बदले मिज़ाज को
मोड़ के ज़िन्दगी के बिगड़े बिसात को
लगा के गले फर्त इम्बिसात को
कुछ तुम कहो, कुछ हम कहें~ रज़ा इलाही
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चाहतों = desire, love;
हर्फ़ = word;
सदाओं = call, voice;
बिसात = chess board;
फर्त इम्बिसात = excessive joy
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