दीपों का महापर्व दिवाली के त्योहार मनाने के लिए हर किसीका मन अनेक खुशियों भर जाता है, लोग अपने परिवार के साथ मिलजुलकर इसे हर्षोल्लास के साथ मानते हैं। कलमकार भवदीप के अनुसार यह खुशी सिर्फ़ दो दिन की होती है और उसके बाद कई लोगों के मन में सूनापन पसर जाता है।
आज देखें मैंने,
बहुत से उदास चहरे
कुछ ऑटो से जा रहे थे,
कुछ बस में जा रहे थे,
कुछ ट्रैन से जा रहे थे,
जो आये थे दीवाली पर
आज वापसी है सब की,
दो दिन की खुशियां
कम से कम तीन दिनों का सूनापन
देकर जाएगी गाँव की गली को,
सेटिंग वाली खिड़की को,
अपने घर को,
माँ और बाबा को
और इन सब से कई ज्यादा अपने आप को।यह कहानी है उन सब की
जो कुछ पाने के लिये छोड़ जाते है अपना कमरा,
अपना घर, अपना प्यार और सब कुछ,
बस खुशियों को पाने के लिए।
उसके बाद इंतजार करते है दीवाली का,
साल भर की उदासी को
दो दिन गाँव जाकर भूलाने का,
लेकिन दो दिन की खुशियां
तीन दिन का सूनापन के अलावा कुछ नहीं दे पाती।इतनी सारी कसमकस में भी
शहर का वो ८ x १० का कमरा
जो बसेरे के लिये किराये पर लिया है
खुशियां बना रहा होता है
आँखे बिछाये इंतजार कर रहा है
क्योंकि बीते हुए दो दिनों से सब कुछ रुका हुआ है कमरे में
जो अब जाकर सूनापन खुशियों में बदलने वाला है
क्योंकि अब फिर से कमरे में रौनक आने वाली है।यह कहानी है मेरी, तुम्हारी और हम सब की
जो घर छोड़ने से पहले, बैग उठाने से पहले,
तिलक लगाने से पहले छोड़ आते है सब खुशियां
अपने घरों के आँगन में फिर से कुछ खुशियां पाने के लिये।~ भवदीप सैनी
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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