दुःखी हैं अन्नदाता

दुःखी हैं अन्नदाता

कुमार किशन कीर्ति किसानों की समस्या अपनी कविता में बता रहे हैं। भारत किसानों का देश है और किसान को अन्नदाता कहा जाता है। किंतु ऐसे किसान जो व्यापारी नहीं है, उनकी दशा दयनीय है।

माथे पर पसीना है
शरीर पर धूलकण है
कंधे पर हल है
फिर,भी अन्न
उपजाते हैं अन्नदाता
इनको नही फिक्र है मौसम की
और ना ही फिक्र है अपने शरीर की
इनको तो बस अन्न उपजाना हैं
सारे विश्व का पेट इनको भरना हैं
लेकिन, दुःख की यही बात है
और चिंता का यही विषय है
जो अन्न उपजाते हैं
वही आज चिंतित हैं, और
पूछो तो चिंता है क्या?

बस, कर्ज का बोझ है
चिंता का आधार
जिसके समाधान के लिए
समाज हैं जिम्मेदार
हल कर बोझ यह सह सकते हैं
लेकिन, कर्ज की बोझ से दबे हुए हैं
कैसे इस कर्ज से निकले?
बस, इसी चिंता में डूबे हुए हैं
इसलिए, इन अन्नदाताओं को
कर्ज से मुक्ति दिलानी होगी
चिंता में डूबे इनके चेहरें पर
मुस्कान लानी होगी, क्योंकि
इनकी मेहनत से ही टिका
हैं विश्व का भरण-पोषण

~ कुमार किशन कीर्ति

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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