हर चेहरा खूबसूरत होता है, फर्क सिर्फ नज़रों का होता है। कई चेहरे आकर्षित किया करते हैं, कलमकार खेम चन्द एक विशेष चेहरे पर अपनी कल्पना से कुछ पंक्तियाँ हमारे समक्ष प्रस्तुत कर रहे हैं।
लिखता हूँ और मन कहता है लिखता ही जाऊं
भाति है कितनी मन को वो मासूमियत वाली सीरत
शर्माकर आईने को बताऊं।
कितनी गलतियाँ कितने रोके हर गलती को मिटाऊं
आती नहीं मुझे चित्रकारी
नहीं तो बनाकर सूरत सबको दिखाऊं।।अल्फाज़ नहीं है उसकी सुन्दरता के लिए
सांवले रंग को कितना सजाऊं
हर शीशे हर परछाई से अक्स अब उसका छिपाऊं।
फिर कहीं से थका हारकर हौसला खुद को बंधाऊं
आ प्रीत संग मेरे कुछ तराने है
जिन्हें मिलकर साथ तेरे गाऊं॥एक झोपड़ी है पास मेरे, है हौसला बुलन्द
महल कोई तेरे लिये बनाऊं।
है जो बीच में ये दीवारें विचारों की
उनको एकपल में हटाऊं।।
कितने राग है, कितने साज है
तेरी मासूमियत के गिनाऊं।
जब तू रूठे
बनकर कोई हसीन ख्वाब तुझको हंसाऊं।।हर गमों को दूर करके
जिन्दगी! पास कितना मौत के लाऊं।
प्यासा है कितना वो मृत शय्या पर लेटा शरीर मेरा
बूंदें सावन की शब्दों से गिराऊं।।
मानेगी दुनिया और मानेगें वो जिनको साथ अब लाऊं
है वही विचार खेम चन्द के
मिलकर सुख दुख की दुनिया संग शीतल सूरत के साथ बिताऊं॥~ खेम चन्द
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