धोखा, छल, कपट और विश्वासघात जैसी प्रकृति इंसानों की फितरत होती है। इसी श्रृंखला में एहसान-फरामोशी भी है, हम लोग अक्सर एहसानमंद होने के बजाय एहसानों को भूल जाते हैं। अमित मिश्र ने इस विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए हैं।
जाने क्यों लोग एहसानों को भूल जाते हैं
स्वार्थ में वो झूँठ की दरिया में कूद जाते हैं।
दिखाने के लिए साथ होने का एहसास देते हैं
मगर वक्त आने पर अक्सर मुँह मोड़ जाते हैं।कुछ लोग माँ बाप से भी नाता तोड़ जाते हैं
उम्र के आखिरी पड़ाव में अकेला छोड़ जाते हैं।
जिन्हें जमाने तक हम दिलों में याद करते रहे
वो अक्सर हमारे जख्मों पर नमक छिड़कते रहे।हमने हर वक्त पकड़ कर चला जिसका हाँथ
उम्र भर करते रहे फरेबी, मक्कारी हमारे साथ।
जिसके जख्मों पर हमने हरदम मरहम किया
आज उसी ने चुपके से मेरे पीठ में खंजर दिया।लहलहाती हुई फसलों का जिसने मंजर दिया
कुछ लोगों ने उस धरती को ही बंजर किया।
जिनके नयनों में हमने नित रंजन किया
उसने मेरी आखों में आँसुओ का समंदर दिया।~ अमित मिश्र
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/405017117072133
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