खेम चन्द ने अपने मन में उठने वाले विचार, सवाल और भाव को शब्दों में गूंथने का प्रयाश किया है। इस मंथन को वे अपनी एक नज्म में पेश करते हैं- कुछ लफ्ज़।
रूठ कर तू भी जिन्दगी सांसों के पास है
जा रहे हैं छोड़कर वो शख़्स मन से खास है।
इक शाख टूटी जो ठूंठ पडा़ उदास है
बदला बदला सा जिन्दगी तेरा ये लिवास है।
ढूंढेगी कभी खुशी हमको बस यही विश्वास है
चलती सांसें कह रही है रूका क्यों ये श्वास है।
ढह रही बोतल साकी टूटा होशोहवास
रिश्तों को वो क्या जाने भरी जो मन खटास है।
ढूंढ रहे हैं वो भी रिश्ते पास पडी मेरी लाश है
रो रहा है गगन कहीं मुझसे नाराज आकाश है।
दो पल की कैसी जुदाई मिट रही जो मिठास
ला रहे हैं शक्कर ताजा उसमें भी खटास है।~ खेम चन्द
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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