आम जनता की अनेकों समस्याएँ होती हैं, उनमें से सभी का समाधान आसानी से हो जाए तो कुछ शिकायत ही न हो। उन समस्याओं को हल करने के बजाय राजनीति होती है जो अत्यंत दुखद है। खेम चन्द ने राजनीति और जनसाधारण से जुड़ी कुछ बातें अपनी इस कविता में लिखीं हैं।
रूकी सी लगती मुझे ये नब्ज़ है,
ठहरे से कहीं छांव में आज लफ्ज़ है।
रूक जा ऐ समय के पहिए पे चलने वाले,
विकास मशीनों को तो यहाँ कब्ज़ है।बंट का था जो राष्ट्र कभी
विस्तृत हिमालय के चारों ओर,
छोटे-छोटे हिस्सों ने कर ली नवभोर।
पहले राज चला फिर चली यहाँ नीति,
दीवारों का शहर हो गया और रिश्ते टांग दिये भित्ति।बहुत आए नेता महान बहुत बंटे यहाँ चुनाव निशान,
आये थे जो गांओं से मेरे उस सरपंच ने
आज रियासत में डाला है आलीशान मकान।
न हो मेरे भारत के वोटर भाई
इन बहुरूपी नेताओं को देखकर परेशान।मंजिल भूला दी है और जमी पर नहीं है ज़ुल्मों के निशां।
कोस रहें है एक-दूसरे को यहाँ सत्ता के फकीर,
अमीर-गरीब भारत की खींची है इन्हीं नेताओं ने लकीर।
धरातल पर पंचायत कि कार्यशैली भी ढीली है,
पंचायत प्रधान ने बनाई ईमारतें यहाँ कई पीली है।घर से चला और चलता रहा,
बात जाके पहुंचाये कोई दिल्ली।
उखाड़ फेंकों इन के तख्त ताज को,
जुमलों के आगे मत बनो तुम बिल्ली।
राष्ट्रीय स्तर से लेकर क्षेत्रीय पार्टियों की मौज है,
एक सीट जीतकर कहतें हैं ये तो हमारी फौज है।मुर्तियों पर पैसा यहाँ पानी की तरह बहाया जाता,
है जो गरीब यहाँ का बेबस किसान वो है ठगाया जाता।
तुम पड़े रहो अपनी बिमारी पर
बेजुबान जानवरों की तरह,
ये हमें नेता द्वारा अहसास है कराया जाता ,
खुद इनके इलाज के लिए वीज़ा,
अमेरिका, अफ्रीका, युरोप का बनाया जाता।कब बनायेंगे ये यहाँ चिकित्सालय बेमिसाल
हर जांच की सुविधा मिले वे सवाल।
मत उलझना कभी मेरे भाईयों
धर्म, वर्ण, सांप्रदाय पर
हमें लड़ाने की इनकी बातों में,
हर वर्ग हर समुदाय से मिलकर रहना हर रातों को।
बहुत बदल चुकी है भारत की राजनीति,
कुछ एक लफ्जों में बताना था दर्द
नादान कलम को लिखी है ये कृति।~ खेम चन्द
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है। https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/408515350055643
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