भारतीय नारी

भारतीय नारी

खेम चन्द लिखते हैं कि आज भी हमारे समाज में औरतों को वह स्थान नहीं मिल पाया है जिसकी वे हकदार हैं। हम भले ही आधुनिकता का चोला ओढ़ लें, किंतु कहीं न कहीं एक कसर बाकी है। बदलाव लाने के लिए हमें अपने विचारों को पावन और कुरीतियों को दूर करना होगा।

न वेद पढे हैं मैंने, न पढे हैं कोई गीता, पुराण,
कटती डोरियां कटते धागे पत्थर मिला न निशाण।
मेरे राष्ट्र की नारियों की है
युगों-युगों से अपनी अलौकिक पहचाण,
एक युग वो था एक युग ये है
करवाई जाती है बंद आवाज उनकी जुबाण।

कभी द्रौपदी का वस्त्र चीरहरण हुआ आम सभा समक्ष
बैठे थे जब बडे-बडे विद्वान,
फिर वही घटित हुआ राम राज्य में
जब सीता को गुजरना पडा़ था पवित्रता के लिये अग्नि संग
राज्य देख मानस अंधे बहरे हो गये थे जो इंसान।
बहुत कष्टों को झेलती रही युगों-युगों से नारी,
बातें तो बहुत की पुरूषार्थ ने पर भूल गया
इज्ज़त नारी की वो करना हर बारी।

पतिव्रता अहिल्या पर शक् किया था जिसने
वो भी था मुनि ज्ञानी महान,
पर खुद की अर्धांगिनी पर लगाए थे उंगल निशान।
घटित होती आई है हर बार बात निराली,
कब उठेगी लगा रखी है आँखों पर जो पट्टी हमने काली।
शबरी महान बेर जुठे राम को प्रेमपूर्वक खिलाए,
राम ने भी माता शबरी के थे गुण गाए।
ये चलते रूकते आज हम इस चकाचौंध में
वो जमाना छोड़ कर कहाँ है आए।

समय बदल बदली काल ने भी अपनी चाल,
पर एक न बदली सोच हमारी और
आज भी औरत जी रही है जिन्दगी बेहाल।
मीरा आई संग प्रीत मुरलीधर संग लगाई,
थी वो भी जात औरत उस पर समाज नें बात बनाई।
कई महान विरांगनाओं की ये भूमि मेरी हिन्दोस्तान है,
पर कच्चे आज भी यहाँ नारियों के लिये बने सोच वो मकान है।

सती होने पर आग के अंगार पर औरत को जलाया,
विदूर हो गया आदमी तो उसका दूसरा विवाह कराया।
वाह से भारतीय समाज
तुने कैसे कैसे रीति रिवाजों का महल बनाया।
झांसी की रानी आई, आई माँ ज्योतिबाफूले बाई,
औरत को शिक्षित करें ये अलख थी जगाई।
कंधे से कंधा मिलाकर हर विपत्ति में
आदमी का सहयोग किया,
बस आदमी ने औरत की सादगी को उपयोग किया।

स्वतंत्रता दिलाने में भारतीय नारी बराबर की भागीदारी है,
तो क्या हुआ गर आदमी तेरे हाथों में सरदारी है।
कभी मंदिर जाने से रोका
कभी मासिक धर्म पर रीति रिवाजों का हवाला किया,
उठा सके आवाज नारी की व्यथा की
बस तुने खामोश जुबां पर अपनी ताला किया।

बेटी, बहू, पत्नी, बहन, माँ ये सभी हमारी जिन्दगी संसार है,
बदल दे सोच दिखा जगत को
कितना विस्तृत तेरे विचारों का आकार है।
होगी भोर नारियों की जरूर वो दिन भी नहीं है दूर,
हम है नारियों से न करो इन्हें
अपने रीति रिवाजों के ताने बाने में बंधने को मजबूर।

~ खेम चन्द

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
https://www.facebook.com/hindibolindia/posts/411208609786317

Post Code: #SwaRachit178

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.