नीरज त्यागी बताते हैं कि यादें किस तरह हमारा पीछा करतीं हैं, कोई भी इन यादों से दूरी नहीं बना सकता है। हमसे जुड़ी हुई हर चीज़ की अलग-अलग यादें किसी भी पल उभर कर सामने आ जाया करती हैं।
पुरानी तस्वीरों में यादों को जिंदा रखते है।
कुछ लोग अभी भी रिश्तों को जिंदा रखते है।।
पुराने किवाड़ों को रोज साफ कर रहे हैं।
कुछ लोग अभी भी रिश्तों को जी रहे है।।
अभी आने ही वाला है मेरे परिवार का कोई।
कुछ लोग अभी भी देहली पर बाट निहार रहे है।।
ना जाने वो करता रहता है इंतजार किसका।
अब रिश्ते तो हर पल उससे दूर ही जा रहे है।।
आँगन को बुहारती, लीपती वो माँ अब नही है।
पता नही क्यों दूसरे रिश्तों को आजमा रहे है।।
प्रसिद्धि की खातिर लोग अपने गाल बजा रहे है।
खून के रिश्तों को रुपयों की गिनती से अपना रहे है।।
गाँव की मिट्टी पहचानती है आज भी सभी रिश्तों को।
अपने सभी बच्चो के पैरों की आहट वो जानती है।।
वृद्ध हो चला बरगद का पेड पहचानता है सबको।
जो बड़े हो गए बच्चे, उनका बचपन यही पर खिला है।।
आँख मूंद कर एतबार करता रहा जो जीवन भर।
उसे तो उसके अपने आँसुओ ने भी उसे छला है।।
पुरानी यादें भी अक्सर उन्ही को सताती है।
दिमाग नही, जो दिल को हरबार आजमाते है।।
~ नीरज त्यागी
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