अक्सर सुनने को मिलता है कि स्त्रियों, लड़कियों से जबर्दस्ती और आपराधिक मामले बढ़ रहें हैं। कई घटनाएँ तो जघन्य अपराध में बदल जाती हैं, कुछ दरिंदों की मासिकता इंटनी घृणित है की वे ऐसे कृत्य करने से जरा भी भय नहीं लगता है। इस कविता में कलमकार भवदीप उन लोगों को कड़े शब्दों में बादल जाने की चेतावनी दे रहे हैं।
सुन रहा है क्या तू ?
तुझसे बात कर रहा हूँ “रेपिस्ट”…
जिस अन्दरूनी भाग से तेरा उदगम हुआ
जिन स्तनों को दूध पीकर तू बड़ा हुआ
आज उन्ही के लिये तू दरिंदगी पर उतर आया।तू भी किसी का बेटा होगा
भाई होगा या पति होगा
तू जो आज किसी की बहन बेटी और
माँ के साथ कर रहा है
कोई तेरे घर के पीछे भी घात लगा कर बैठा होगा,
कोई तेरे घर की अस्मत को भी तार तार कर रहा होगा।एक बात और सबसे पहले तू
अपने घर मे यह देखना बन्द कर दे
कि वो मेरी बहन है पत्नी है माँ है,
बस तू सब मे बस एक औरत को देखा कर और
उन्हें देख कर भी तेरे मन मे गन्दगी वाले कीड़े कुलबुलाने चाहिये।जितना राक्षस तू बाहर की लड़की को देख कर होता है
उसकी इज्ज़त को लूट कर होता है
उतनी ही हैवानियत तुझे तेरे घर में
माँ बहन और पत्नी की अस्मत को लूट कर होनी चाहिये।अपने आप से सवाल कर-
क्या यही संस्कार दिये थे?
क्या तू भी तेर बाप का ही अंश है?
क्या तू इंसान कहलाने के लायक है?
जिस दरिंदगी से तू औरत को नोच रहा है
अगर औरत ने प्रतिकार लेना आरंभ कर दिया तो
पृथ्वी पर पुरूष को ढूंढने में वर्षों वर्ष बीत जाएंगे।~ भवदीप सैनी
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