जिन लोगों के बीच हम घिरे होते हैं और जिनसे हमारी दुनिया पूरी सी लगती है उन्हे हम अपना मानते हैं, किंतु यह अपनापन सदैव कायम नहीं रहता। कई बार गलतफहमियां तो कभी विश्वासघात उन्हें पल-भर में पराया बना देते हैं। कलमकार अमित मिश्र ने अपने मन की बात इन पंक्तियों में रखी है।
जिसने मुझको बीच राह में छोड़ आया था
वह शख्स कोई गैर नहीं न ही पराया था।उसके नाजुक पैर कहीं हो न जायें घायल
मैंने उसकी राहों में दिल को बिछाया था।मेरे राहों में अक्सर वही बिखेरते रहे कांटें
जिनके कदमों तले मैं फूलों को सजाया था।मेरे सांसो में तो बहती थी प्यार की सरिता
उसको मालूम नहीं जिसने इसमें नहाया था।दर दर भटकता रहा वो जिदंगी की राहों में
जिसने मेरे सच्चे प्यार को ठुकराया था।उसके ख्वाबों में भी मेरा चेहरा आने लगा है
जिसने कभी मेरी तस्वीरों को जलाया था।अब तो वो भी गुनगुनाती है मेरी गजलों को
वर्षो पहले जिसने मुझको पागल बताया था।~ अमित मिश्र
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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