विविधताओं से भरा देश है भारत, यहाँ अनेक भाषाओं, त्यौहारों और संस्कृति से जुड़े लोग रहते हैं। कलमकार अपनी कलम से होली के त्यौहार के रंगों को उजागर करने की कोशिश की है।
रंगों का त्योहार- होली ~ खेम चंद
आया बसन्त आयी बहार
सजने लगे कान्हा के लिये मन्दिर द्वार।
रंगों की देखो दुकानें सजी, जाग गया प्रेम कन्हैया
जब पायल कहीं पर गोपियों की बजी।
उड़ेगी मिट्टी लगेगा गुलाल,
आ गया मईया यशोदा का लाल रंगने गोपियों के लाल गुलाबी गाल।
ब्रज, वृन्दावन को साथ में रंगाएंगे ढोलक की थाप पर
आज मेरे कृष्ण कन्हैया गोपियों को नचाएंगे।
मेरे कान्हा के हाथों के गुलाल से
गोपियों आज तुमको कौन बचाएंगे।
हर्ष होगा उल्लास होगा
कृष्ण-गोपियों के बिछोड़े का मिलाप होगा।
कृष्ण लला के प्रेम की प्यासी ब्रज की गोपियाँ सारी
रंगों से कृष्ण लला को मनाने की कर रखी है सबने तैयारी।
कह रहे ब्रज के बांके बिहारी, आओ रंगने मुझे बारी-बारी
ताकि पलभर में बीते न ये हंसी मजाक की रैना सारी।
निहार लूं या सूरत उतार लूं अवध की मैं राधा कुमारी
रंगने दे मुझे भी मेरे प्रियतम बांके कृष्ण मुरारी।
रंगों में रंग गई तेरे गोपियाँ माखनचोर द्वारिकाधीश ब्रज की प्यारी
रंग गया मौसम रंग गया शमा, रंगा ली हमने हर घर हर दीवारी।
बरस रहे हैं रंग यहां प्रेम के सारे
उतार लूं रंग बजाके बांसुरी यमुना किनारे,
टकटकी नजरों से रंगों में विलीन
कृष्णा कन्हैया को सभी निहारे
तुम्हीं से हम है हमारे प्रेम दुलारे।
हो गई बरसात आज जश्न में कान्हा के प्रीत निहारूं
लगा है दाग जो रंगों का उसको कभी नहीं उतारूं।
तेरे आने की खुशी में मैं राधा खुद को तेरी पलकों में सवारुं
आ जा मेरे प्रियतम मिलन की इस रीत में तुमको पुकारूँ।
डिजिटल होली ~ डा. रमाकांत क्षितिज
चलो डिजिटल होली खेलें
कुछ मैसेज तुम लिख दो
कुछ मैसेज हम लिख डाले
कुछ तुम कॉपी पेस्ट करो
कुछ हम स्वयं लिख डाले
कुछ तुम लाइक करो
कुछ हम कमेंट करें
आज तो अपनी बात करें
कुछ स्माइल तुम भेजो
कुछ ठहाका हम भेजें
कुछ रंग तुम भेजो
कुछ रंग हम भेजे
चलो डिजिटल होली खेलें
तुम व्हाट्सएप पर खेलो
हम फेसबुक पर खेलें
तुम इंस्ट्राग्राम पर भी खेलो
हम ट्वीटर पर भी खेले
तुम मन ही मन खेलों
हम तन ही तन खेलें
आओ मिलकर डिजिटल होली खेलें
तुम टेंशन डिलीट कर दो
हम ईगो डिलीट कर दें
आज के दिन रिफ्रेश होकर
खुशियों का नया ऐप डाउनलोड कर लें
चलो डिजिटल होली खेलें
होली ~ कुमार संदीप
होली है रंग बिरंगे रंगों का त्योहार
आओ भूलकर बीती बात ख़ुशी से
मनाएँ यह पुनीत पावन त्योहार
प्रेम का रंग घोलकर चलो हम मनाएँ
आनंद पूर्वक यह ख़ुशियों का त्योहार।।
ज़िंदगी का है क्या भरोसा न जाने
कौन-सा पल साँस सदा के लिए थम जाए
है जब तक साँस तन में भूलकर गिले
आओ रिश्तों में प्रेम का रंग घोलें
हाँ चलो हम ख़ुशियों का यह त्योहार ख़ुशी से मनाएं।।
होली है हर्षोल्लास का पर्व तो चलो
निराश और हताश होने की बजाय हम
हर्ष से रंगोत्सव का यह त्योहार मनाएँ
हैं जो निर्धन और बेसहारे चलो आज
हम इस दिन उन्हें भी कुछ ख़ुशियाँ अर्पित करें।।
चलो आज इस रंगोत्सव के पावन दिवस के दिन
हम माता-पिता की सेवा अंतिम साँस तक
करने का प्रण लें हाँ चलो आज हम प्रण लें
चाहे हो कोई भी मुश्किल हम साथ निभाएंगे सदा
निर्धन और बेसहारों का सहारा बनेंगे सदा
इस रंगोत्सव के पर्व के दिन चलो हम शपथ लें।।
होली आयी ~ नीरज त्यागी
होली आयी, होली आयी
रंग बिरंगी टोली आयी।
सबके चेहरे रंग बिरंगे,
बच्चो की टोली है आयी।।
झूमे पिंकी और नाचे पप्पू
पिचकारी संग धूम मचाई।
होली आयी, होली आयी
मस्तानो की टोली आयी।।
इसके दादा, उसके मामा
कोई रंगों से ना बचने पाए।
बच्चो के रंग बिरंगे गुब्बारों
से कोई भी ना बचने पाए।।
छोटे-छोटे बच्चो ने सबको
दिखाया है, प्यारी रंग बिरंगी
होली हर मजहब को फिर
से साथ-साथ मे लाया है।
ना कोई हिन्दू, ना को मुस्लिम
हर भारतवासी एक रंग में
रंगा है, उनके मुस्कुराते चेहरों
पर बस एकजुट भारत दिखा है।
दो दिन की होली ~ अमन आनंद
दो दिन होली रही गाँव में
चली शहर की ओर,
दादी बाबा को खलती है
त्योहारों की भोर ।
छोड़ गया छोटू आँगन में विखरा हुआ गुलाल
चार चार फुट रँगी हुयी है घर की हर दीवाल
रोक न पाया पिचकारी का
बंधन था कमजोर,
दादी बाबा को खलती है
त्योहारों की भोर ।
रस्सी पर है गुड़िया की वह होली खेली फ्रॉक
दादी को रँग दिया परी ने खूब मज़ाक मज़ाक
रखी हुयी गुड़िया की बेली
हर पूड़ी चौकोर,
दादी बाबा को खलती है
त्योहारों की भोर ।
गुझिया रखी हुयीं हैं लेकिन जाती रही मिठास
बेटा बहू गये घर से तो घर हो गया उदास
नज़र चुराते बुड्ढा बुढ़िया
भरे आँख में लोर,
दादी बाबा को खलती है
त्योहारों की भोर ।।
सुंदर कविताएं।