हम सभी चाहे जितनी बहस या ज्ञान की बातें कर लें, किंतु जीवन में रूठना और मनाना कम नहीं हो सकता है। जब कोई रूठ जाता है तो मनोदशा किस प्रकार की होती है, यह विजय कनौजिया ने अपने विचारों के माध्यम से इन पंक्तियों में लिखी है।
कभी पीड़ा भी होती है
कभी मन टूट जाता है
बहुत बेबस सा होता हूँ
जब कोई रूठ जाता है।कभी आँखें भी रोने को
नहीं तैयार होती हैं
जब कोई आसरा देकर
हमें फिर छोड़ जाता है।बुनूं अब ख्वाब फिर कैसे
नहीं तैयार होता मन
संजोउँ याद अब कैसे
जब कोई याद आता है।प्रेम का रूप अब बदला
कौन अपना पराया है
नहीं रुकते हैं तब आंसू
जब कोई अपना रुलाता है।चाँदनी रात में अब तो
चमक तारों की फीकी है
नहीं भाए कोई मौसम
जब कोई टूट जाता है।कभी पीड़ा भी होती है
कभी मन टूट जाता है
बहुत बेबस सा होता हूँ
जब कोई रूठ जाता है।
जब कोई रूठ जाता है ….~ विजय कनौजिया
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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