जो लोग निःसवार्थ भाव से दूसरों की सेवा और मदद करते हैं वे अक्सर अपने कार्यों का ढिंढोरा न पीटकर मौन रहना पसंद करते हैं। ऐसे परोपकारियों को कष्ट भी पहुंचाया जाता है, फिर भी उनके मौन रहने पर कलमकार मनकेश्वर भट्ट के मन में अनेक प्रश्न उठे और उन प्रश्नों को अपनी कविता में लिख दिया।
देता हमें जो जिंदगी की सांसें हर पल
है क्यों नही उसे एहसास ये
वो एहसान क्यों नहीं दिखाता
ये पेड़
तू क्यों मौन है …हर दर्द सहती है ,
देती है वो वास हमें
मेरी ज़िंदगी पलती है उसकी
छाती पर
ए धरा तू उफ़ क्यों नहीं करती ,
तू मौन क्यों है ….तू थकता नहीं
तेरी अंधेरे से उजाले
लाने की प्रवृत्ति
है तुममें मिट्टी को
उर्वरा बनने की शक्ति
ये दिनकर
तू मौन क्यों है ….बहती हो मजधार तुम
है तुममें पवित्रता की पहचान
देती हो नई जिंदगी सबकों
फिर भी ए भागीरथी
क्यों रहती हो मौन ….बिना उफ़ किये
पालती रहती हो
जैसे हो सबकुछ तेरा
रहती हो सबकी पहली
आखरी आस तुम
ए पालनहार
तू मौन क्यों है ….~ मनकेश्वर महाराज “भट्ट”
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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