बीते हुए दिनों और आने वाले समय की चिंता हमें दुःखी करती है। कलमकार निहारिका चौधरी ने इन सब की चिंता भूल कर आज में ही जीने की बात अपनी इस रचना में कही है। सच भी है कि हम अपने आज को पूरी तरह से नहीं जीते और भविष्य की चिंता में ज्यादा खोए रहते हैं।
क्यों ना आज में ही जिया जाए?
रेत की तरह फिसल गए जो पल ना वो वापस आएंगे,
ना ही खुशियों भरे वो लम्हें वापस लौट आएंगे,
चाहें दुःख का कोई कारण हो,
या सुख में कोई साथी हो,
ज़रूरी नहीं ऐसा हमेशा ही हो,
तो क्यों अपनी ज़िन्दगी में मिठास की जगह
उन कड़वे लम्हें को याद करना,
जो बीत गए पल, उन में खुशियां ढूंढ़ना,
सभी दुःख भरे लम्हें छूट जाएं,
सिर्फ़ खुशियों भरे लम्हें वापस आ जाए,
इन सब में क्यों अपना वक़्त बर्बाद करना,
ये हम सबके परे है,
तो क्यों ना इन सब बातों को अतीत में ही रहने दिया जाए,
तो क्यों ना आज में ही जिया जाए?
हर बार सागर से मोती का मिलना ज़रूरी तो नहीं,
हर बार कड़वाहट, मन मुटाव ही मिले ये जरूरी तो नहीं,
हर बार प्रेम भरी ज़िन्दगी के बदले,
उदासी ही मिले ये जरूरी तो नहीं,
वक़्त, बे-वक़्त,
हानि और लाभ,
सुख और दुःख का आना जाना तो लगा ही रहता है,
अतीत में घटी घटनाओं को याद करके
क्यों मन की शांति भंग करना,
जो आज हैं लम्हें उनसे खुद को क्यों दूर करना,
जो हम सबके परे है उस में क्यों खोकर
अपना वक़्त और अपनी खुशियां खुद से क्यों छीनना ,
क्यों ना ये सब कुछ भुला कर एक नई शुरुवात की जाए,
तो क्यों ना आज में ही जिया जाए?~ निहारिका चौधरी
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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