न्याय में देरी पीड़ितों और उनके प्रियजनों को कष्ट पहुंचाती हैं। हम जन-सामान्य लोग भी उनके लिए न्याय की मांग करते हैं किन्तु कुछ समय बाद भूल जाते हैं कि कोई घटना घटी थी। कलमकार खेम चन्द ने अपनी कविता के जरिए संदेश देना चाहते हैं कि मासूमों को न्याय और अपराधियों को सीख अवश्य दें।
मुझे भी याद था वो दिसम्बर का सर्द महीना,
राजपथ और राष्ट्र के गलीयारे।
जहाँ एकत्रित हुये थे आप लोग सारे,
किसी के हाथ में मोमबत्ती
तो किसी के हाथ में न्याय की मांग करती तख़्ती।
हुई थी इंनसानियत उस वक्त भी तार-तार,
क्यों भूल जाते हो तुम हर बार।
भूल गये निर्भया को और भूल गये न्याय की मांग,
अब मत करो फिर तुम लोग झुठा स्वांग ।
बार-बार बस मुझे ईक बात है याद आती,
शोर-शराबा, तोड़-फोड़ तो बहुत है करते।
पर मति तुम्हारी कहाँ है जाती।
अश्रु बहते उस पल तुम्हारे नितधार ,
पर बेटियों के लिये कानून बनाना भूल जाते हो हर बार।
कभी शहर है रोया, तो कभी पहाड़ ने आँसू बहाये,
कल शहर था रोया, आज पहाड़ ने दुख अपने सुनाये ।
मैं पुछती हूँ शोर करने वाली जनता से फिर
आज तक कानून में नियम-ए-सजा नयें क्यों नहीं है बनाये।
सोये थे माली तुम बाग के गहरी नींद मे कहीं,
आज बेटी की सिसकियों ने है तुम जगाये।
जाग जाओ और बेटियों की पुकार सुनो,
न्याय में देशवासियों धागे कुछ कठोर बुनो।
मुझे भी तुम भूला दोगे।~ खेम चन्द
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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