कवि मुकेश अमन की एक बाल कविता ‘बंदर और उस्तरा’ पढ़िए। ज्यादा होशियारी अक्सर खुद पर ही भारी पड़ती है और बड़ा नुकसान झेलना होता है। यह दुनिया अनेक तरह के चालाक लोगों से भरी पड़ी है।
एक दिन इधर-उधर कहीं से,
बन्दर के कर लगा उस्तरा।फिर तो बन्दर कूद-कूद कर,
लगा फेंकने फाड़ बिस्तरा।
एक दिन इधर-उधर …इस हरकत में बन्दर जी के,
कान कटे और कटी नाक भी।
दवा-पट्टियां, पड़ी जरूरत,
गई पानी में रही साख भी।दर्द उठा, कहराया-कूदा,
लगने लगा वह एक मस्खरा।
एक दिन इधर-उधर …मगर बांदरा और उस्तरा,
बेमेल का मेल बुरा है।
केवल संसद, बात नही है,
अमन इससे जहां भरा है।कब तक बन्दर और उस्तरा,
इसमें तो है आखिर खतरा।
एक दिन इधर-उधर …~ मुकेश बोहरा अमन
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