कन्हैया लाल गुप्त माँ की थपकी याद दिला रहे हैं, इन पंक्तियों में माँ से जुड़ी अनेक स्मृतियाँ नज़र आती हैं। हालांकि माँ के गुणों और ममता का वर्णन लिखा नहीं जा सकता है फिर भी हम कलमकार एक छोटी सी कोशिश अवश्य कर सकते हैं।
माँ की थपकी सबसे भली होती है।
माँ के हाथों में वह नींद भरी होती है।
ममतामयी स्नेहास्पर्श से थकान मिटाती है।
अपने भूखी रहती है पर हमें खिलाती है।
माँ के चरणों में ही स्वर्ग है जन्नत है।
माँ ही तो हमारे जीवन की मन्नत है।
माँ के थप्पड़ से हर बात बन जाती है।
जिसपर नहीं पड़ती जीवन बिगड़ जाती है।
माँ के हाथों का कौर मिश्री है मक्खन है।
माँ के हाथों का ठौर शिवाजी का जीवन है
माँ का सबक जीवन की मधुर कहानी है।
माँ की बातें बरसात का झरता पानी है।
माँ की लोरी जीवन की जैसे थाप है।
माँ की आँखों से झरता जैसे बरसात है।
~ डॉ कन्हैया लाल गुप्त ‘शिक्षक’
हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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