शहंशाह गुप्ता “विराट” ने कुछ सवाल प्रस्तुत किए हैं। जीवन के मर्म को समझाने वाले जवाब यदि आपके पास हैं तो यह कविता पढें और अपनी राय वयक्त कीजिये।
कौन सा भाव समर्पण का ह्रदय में भर लाये हो ?
इतने पाषाणों को वहन कर कर-कमलों में आये हो,
क्या विवेक की बातें करूँ और क्या सौहार्द की बात करूँ?
क्या हृदय बस तुम्हारा ही दुखता है और तुम ही बस तिलमिलाए हो?
समग्रता की बात करो तो तुमको मिथ्या सी लगती है,
देश-वंदन की बात करो तो व्यर्थ कृपा सी लगती है,
तुम भर के अंचलों में जो कुछ भी छींटते हो औरों पर,
बहुतों को उसमे भी स्वार्थ-छाया सी लगती है,
ऊँगली तनती है जब औरों पर तब खुद का ध्यान होता नहीं,
जब भी कुछ होती है बात पृथक सी, तो वो व्यथा सी लगती है,
तुम कौन से देश-प्रेम का राग मुँह से चलाते हो?
पता नहीं किस देश का, किस समाज का अन्न खाते हो.
तुम अपने स्वार्थ में देश हित का ध्यान करते नहीं,
अपने भावुक बातों में तनिक भी सम्मान रखते नहीं.
पता नहीं कैसे मिला तुमको ऐसा व्यवहार है,
लगता है तुम्हारे विचारों में राजनितिक व्यभिचार है,
कुछ करो की बातें न हो दंगों की,
कुछ करो की हो पूर्ण शांति,
अलग न हो जिससे एकता सामाजिक अंगों की||~ शहंशाह गुप्ता “विराट”
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