अलमारी साफ करते हुए इशिका के हाथ आज कई साल पहले लिखा पत्र हाथ लगा जो उसने नीलेश को लिखा था। पत्र को देखते ही वो अतीत में खो गई। उसे याद आया कि नीलेश से झगड़ा होने पर वह मायके आ गई थी और उसके दो महीने बाद ही उसने यह पत्र नीलेश को लिखा था। उस दिन संडे था इसलिए मंडे को पोस्ट करने के लिए रख दिया था। पर इत्तेफाकन संडे को ही नीलेश का फोन आ गया था और वो मुझसे बोला था कि तुम्हें अपने मायके आये हुए दो महीने हो गए हैं और मुझे एक दिन भी तुम्हारी कमी महसूस नहीं हुई बल्कि सुकून से रह रहा हूं और आगे भी सुकून से ही रहना चाहता हूं। बेहतर यही होगा कि हम दोनों अलग ही हो जाए और तलाक ले लें। इशिका को नीलेश की बात सुनकर गहरा धक्का लगा था। वह बोली जब तुम्हें मेरी ज़रूरत ही नहीं फिर साथ रहने का फायदा ही क्या।अगर तुमने तलाक का मन बना ही लिया है तो ज़बरदस्ती मैं भी तुम्हारे साथ नहीं रह पाऊंगी। फोन रखने के बाद उसने लैटर को छुपा दिया था। कुछ समय बाद दोनों में तलाक भी हो गया। नीलेश ने दूसरी शादी भी कर ली पर इशिका ने फिर शादी करने की हामी नहीं भरी। उसने वह पत्र एक सांस में पढ़ डाला जो वह कभी पोस्ट ही नहीं कर पाई।
प्रिय नीलेश,
कैसे हो?
आशा करती हूं तुम ठीक ही होंगे। मुझे मायके आए हुए दो महीने से ज़्यादा हो गए हैं पर तुमने मुझे एक फोन क्या मैसेज तक नहीं किया और ना ही मेरे मैसेज का कोई रिप्लाई है और ना ही मेरा फोन रिसीव करते हो ।क्या तुम मुझसे अब तक नाराज़ हो? क्या सारी गलती मेरी ही थी? हम दोनों के बीच बहस तो अधिकांशत: हो ही जाती थी पर उस दिन तुमने मेरे पेरेंट्स को बुरा-भला कहने में कोई कसर नहीं छोड़ी तो मैंने भी प्रतिक्रिया स्वरूप तुम्हारे पेरेंट्स को उल्टा सीधा बोल दिया। मेरा मन्तव्य तुम्हें यह महसूस कराना था कि अपने पेरेंट्स के लिए बुरा सुनना कितना दुःख दायी होता है।पर थोड़ी देर बाद ही मुझे यह महसूस हुआ कि तुम में और मुझ में फर्क ही क्या रह गया जो मैंने विवेक से काम नहीं लिया और फिर थोड़ी देर बाद ही मैंने तुमसे माफी भी मांगी पर तुम तो कुछ सुनने को तैयार ही नहीं थे। तुमने तो मुझे घर से निकल जाने का हुक्म सुना दिया था ।क्या वह सिर्फ तुम्हारा एवं तुम्हारे पेरेंट्स का ही घर है मेरा वहां पर कोई हक नहीं है? मैं भी स्वाभिमानी हूं तुरंत अपने मायके चली आई. ना तो मैं तुमसे पढ़ाई लिखाई में कम हूं और ना ही कमाई में। मेरे लिए अपना घर खरीदना कोई मुश्किल काम नहीं पर मेरा दिल तो तुम्हारे पास ही रह गया है मैं अपना प्यार रूपी आशियाना बचाना चाहती हूं। मुझे आज भी तुम्हारा इन्तज़ार है ।मैं अपने अहम को बीच में नहीं लाना चाहती हूं क्योंकि इसकी वजह से मैंने बहुत से घर टूटते देखे हैं। अगर तुम्हारा अहं आड़े ना आ रहा हो और मेरे प्यार की कद्र करते हो एवं पिछली बातें भूल कर मेरे साथ आगे बढ़ना चाहते हो तो इस पत्र का उत्तर देना अन्यथा,
उत्तर की प्रतीक्षा में…
तुम्हारी इशिका
पत्र पढ़कर उसकी आंखों से अश्रु धारा बह निकली पर कुछ सोच कर उसने आज उस पत्र को फाड़ कर फेंक दिया। वह सोचने लगी जिस व्यक्ति ने अपने जीवन से उसे निकाल ही दिया उसके लिए आंसू बहाने से क्या फायदा। सच में पत्र फाड़ कर उसे बहुत सुकून मिला और फिर वह अपने काम में लग गई।
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लेखिका- श्रीमती वन्दना भटनागर (मुज़फ्फरनगर)
बहुत सुंदर और मार्मिक