१४ सितंबर को हर वर्ष हिन्दी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में अधिकांश लोगों द्वारा हिन्दी भाषा बोली जाती है। हिन्दी के बारे में रचनाकारों ने अपने मन की बात कहने के लिए कुछ कवितायें लिखीं हैं जिसे आप भी पढ़ना पसंद करेंगे।
राष्ट्रभाषा अब तो हिन्दी को वरो
राष्ट्रभाषा को चलो सुदृढ़ करो
मिलकर नमन सब आज हिन्दी को करो।
आओ मिलकर आज सब यह प्रण करो
राष्ट्रभाषा अब तो हिन्दी को वरो।।
राष्ट्रभाषा हिन्दी क्यों रोने लगी
अपने घर आंगन में वो खोने लगी।
अब तो इसके मान को ना कम करो
अंग्रेजियत को छोड़ हिन्दी को वरो।।
देशभर में हिन्दी का अब मान हो
राष्ट्रभाषा का यहां सम्मान हो।
पूर्णव्रत हिन्दी का यारो तुम करो
छोड़ भाषा गैर हिन्दी को वरो।।
राष्ट्र की उन्नति तभी हो पाएगी
राष्ट्रभाषा हिन्दी जब बन जाएगी।
अब तो सारे काम हिन्दी में करो
राष्ट्रभाषा अब तो हिन्दी को वरो।।
एक हिन्दी एक हिंदुस्तान का
संकल्प लो अब राष्ट्र के निर्माण का।
जय घोष अब चहुंओर हिन्दी का करो
सारी भाषा छोड़ हिन्दी को वरो।।
तु हिन्दी है
तु हिन्दी है
तु हिन्दी है, तु जिन्दगी है,
तु आशा है, तु परिभाषा है,
अखंड भारत का तु ही अभिलाषा है।
तुझसे दुर कोई जाए नहीं,
प्रेम की बोली सुन चले आए,
दर्द की भाषा, दिल की भाषा,
सजी हुई महफ़िल कि भाषा।
गीत की भाषा, प्रित की भाषा,
इसके लिए हर प्रेमी प्यासा।
दिन की भाषा, रात की भाषा,
देवनागरी ने तुझे तरासा।
चैन की भाषा, नैन की भाषा,
ममता की भाषा, क्षमता की भाषा,
शान्ति की भाषा, क्रान्ति की भाषा,
हे माते मैं तेरा दासा।
हिन्दी का करें मान
हिन्दी का करें मान, देती हैं ये सम्मान
उन्नत रहें ये सदा, बनती रहे शान
शब्दों का रूप हैं ये, बढ़ता रहें ये जाल
श्रृंगार करती रहें, झूठी न हो ये आन
स्वरों का हो संदेश, बजता रहे ये साज़
मधुर रहें ये सदा, सजता रहें मान
सृजन हिन्दी का हो, बना रहें अभिमान
भाषाओं में रहें सदा, इसकी पहचान।
हिन्दी भाषा
हिन्दी हमारी राष्ट्रभाषा
भारतीयता की सच्ची परिभाषा
आओ करें इसका सम्मान
सिंहासन उसे करें प्रदान
अंग्रेज़ी भाषा है पराई
हमने इस से प्रीति बढाई
इसने अपनी पैठ बनाई
आओ हम सब प्रण करें
हिन्दी प्रसार हम मन से करें
हर वर्ष हम हिन्दी दिवस मनाते
बड़ी बड़ी कसमें हम खाते
सिर्फ हम औपचारिकता ही निभाते
बाद में हम सब भूल जाते
नहीं देते हम इसे सम्मान
कैसे बनेगा हमारा भारत महान
इंग्लिश हम पर कर रही राज
हिन्दी भाषा बने सरताज
यही है मेरे दिल की आवाज़
हिन्दी ओढे राजभाषा का ताज
आओ हम संकल्प करें
अपने को इस कार्य हेतु समर्पित करें
हिन्दी
सबसे सुन्दर हमारी हिंदी हैं,
सजती माथे पर इसके बिंदी हैं.
मातृभाषा हैं ये हमारी,
बोलना इससे सीखा हैं,
माँ की ममता का स्वरूप
हमने इसमें देखा हैं.
भारत की राजभाषा,
सबसे अधिक बोली जाती हैं,
हजारों साल हैं पुरानी,
इसीलिए प्राचीन भाषा कहलाती हैं.
कई शैलियों मेँ बोली जाती,
हर जगह मान पाती हैं,
पुरे विश्व मेँ हैं मान्य ये
दूसरे स्थान पर आती हैं.
सबसे सहज सबसे सरल,
समझ मेँ सबकी आती हैं,
भावनाओं का विस्तारण
अच्छे से कर पाती हैं.
हिन्दी ही बोलते हैं हम,
हिन्दी ही हमको भाती हैं,
गर्व हैं हम हैं हिंदुस्तान मेँ
और ये हिंदुस्तानी कहलाती हैं.
मेरी प्यारी भाषा हिन्दी
अम्बर में जब तक सूरज और चंदा में लगी बिंदी,
प्यारी रहे हमारी राष्ट्र भाषा कहते जिसे हिंदी।
शब्द, व्यंजन अक्षरों यह सजी रहती,
हिंदी हमारी वाणी और चेतना का शुभ पहचान कराती।
सबसे प्यारी मेरी हिंदी सबसे न्यारी मेरी हिन्दी,
हम सब मे प्रेम बढ़ाती सबको गले से लगाती।
पूरे देश को जो जोड़ती,
ऐसी मजबूत धागा है मेरी प्यारी हिन्दी।
अपने संस्कारों का सदैव बोध कराती,
जो हमे हिंदुस्तानी होने का अहसास दिलाती।
मुख पर आते ही कानों को अति मधुर लगती,
इक्किश कोटि-जन-पूजिता हिंदी भाषा आती।
चारों धामो की धाराएं जैसे सागर मे मिली,
शब्द नाद, लिपि लिए हिंदी पुष्प कमल सा खिली।
पूरब पशिचम उत्तर दक्षिण चारो दिशा सेतु बनाती,
गंगा कावेरी सी धारा हिंदी,सबको साथ मिलाती।
बसी कबीर की प्रेम इसमें भाव को पिरोया रसखान,
चलो हम सब मिलकर करे हिंदी का उत्थान।
पहचान हमारी शान हमारी सम्मान हमारी,
सदा न्यारी लगे अमर रहे हमारी प्यारी भाषा हिन्दी।
हिंदी मान है सम्मान है
हिंदी मान है सम्मान है
हिंदी से हमारा जहान है
हिंदी पढ़ाओ जगत में फैलाओ
हिंदी से समूचा हिंदुस्तान है
हिंदी रथी सारथी प्रेमचंद महान है
हिंदी कवियों के प्राण समान है
हिंदी से हम सब जाने जाते हैं
हिंदी हमारी गौरव और पहचान है
हिंदी काव्य का कल्याण है
हिंदी से भाषाओं का उत्थान है
हिंदी को हृदय में बसाओ
हिंदी पथ का हर व्यक्ति सुजान है
हिंदी मेरे देश की आशा
जन-जन की आज अभिलाषा,
हमारी अपनी प्यारी हिंदी भाषा।
रंग-बिरंगी बोलियों से सजी मातृभाषा,
केवल भाषा नहीं हिंदी मेरे देश की आशा।
चाहे हो वर्तनी या हो व्याकरण,
चाहे हो कविता या कोई संस्मरण।
हर रूप हर रंग को कर ले स्वयं में वरण,
केवल भाषा नहीं हिंदी मेरे देश की आशा।
जितनी सरल उतनी मधुर कंठप्रिय अपनी भाषा,
मोह ले मन हर सुनने वाले का ऐसी है अपनी भाषा।
एकजुटता का पाठ पढ़ाती हर देशवासी को हिंदी भाषा,
केवल भाषा नहीं हिंदी मेरे देश की आशा।
चाहे हो सूर-तुलसी, चाहे हो प्रसाद-निराला,
चाहे हो प्रेमचंद-यशपाल, चाहे हो द्विवेदी-भारतेंदु।
सबके प्रयासों से समृद्ध हुई है अपनी ये हिंदी भाषा,
केवल भाषा नहीं हिंदी मेरे देश की आशा।
करना है हमें निरंतर प्रयास कुछ ऐसा,
प्रगतिपथ पर आगे बढ़ती जाए अपनी हिन्दी भाषा।
गूंजे चहुंओर हर दिशा में केवल जय हिंदी का नारा,
केवल भाषा नहीं हिंदी मेरे देश की आशा।
मैं हिंद की बेटी हिंदी
भारत के,
उज्जवल माथे की।
मैं ओजस्वी बिंदी हूँ।
मैं हिंद की बेटी हिंदी हूँ।
संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश की,
पीढ़ी दर पीढ़ी सहेली हूँ।
मैं जन-जन के, मन को छूने की।
एक सुरीली सन्धि हूँ।
मैं मातृभाषा हिंदी हूँ।
मैं देवभाषा,
संस्कृत का आवाहन।
राष्ट्रमान हिंदी हूँ।।
मैं हिंद की बेटी हिंदी हूँ।
पहचान हूँ हर,
हिन्दोस्तानी की मैं।
आन हूँ हर,
हिंदी साहित्य के
अगवानों की मैं।।
मां, बोली का मान हूँ मैं।
भारत की, अनोखी शान हूँ मैं।।
मुझको लेकर चलने वाले,
हिंदी लेखकों की जान हूँ मैं।
मैं हिंद की बेटी हिंदी हूँ।
मैं राष्ट्र भाषा हिंदी हूँ।
विश्व तिरंगा फैलाऊँगी।
मन-मन हिन्दी ले जाऊँगी।।
मन को तंरगित कर।
मधुर भाषा से।
हिंदी को विश्व मानचित्र पर,
सजा कर आऊँगी।।
हिंदी है मेरी पहचान
उस धरती की बेटी हूँ मैं
जिसकी मिट्टी के हर कण में
बसती है मेरी जान
जन्म,वंश ,कर्म ,सुयश
सब एक तरफ है
हिंदी है मेरी पहचान ।
एक भाषा जो सहज-सरल है
जोड़ती देश के हर कोने को
सब को अपनाती ,प्रेम दिखाती
अंकुरित करती प्रेम सँस्कृति
हिंदी है जीवन का वरदान।
रूप अलग-अलग है इसके
चाहे समतल ,मरु या पहाड़
वर्चस्व जिसका निखरे दिन-दिन
गर्व से बोले इस देश के जन-जन
हिंदी है भारत का स्वाभिमान।
ऋण तुम्हारा चुका ना सकेंगे
जब तक जीएंगे तुम्हारी सेवा करेंगे
भाषाओं में तुम सबसे दुलारी
तुम बिन जीवन की हर भावना
रह जाएगी निष्प्राण
हिंदी में बसती मेरी जान।