बिकने को जी चाहता है

बिकने को जी चाहता है

रिश्तों का अनादर नहीं होना चाहिए अन्यथा वे सिर्फ नाम मात्र के लिए ही रहेंगे। आजकल तो रिश्तों को निभाना लोगों के लिए कष्ट प्रतीत होता है, हर कोई इससे छुटकारा पाना चाहता है। कलमकार खेम चन्द ने अपनी कविता – बिकने को जी चाहता है- में रिश्तों को समेट कर रखने का संदेश दिया है।

आज फिर कुछ लिखने को दिल चाहता है
बचे रहे रिश्ते संसार में आज फिर
खुद बिकने को जी चाहता है॥

काट रहे हैं पतंग यहाँ एक-दूसरे की सभी
आज सबसे लड़कर टिकने को जी चाहता है॥
छुपा कर रखा था आईने को खुद से कहीं
आज़ खुदी को जी भर देखने को जी चाहता है॥
समझ नहीं रही यहाँ किसी को हावभावों की
आज फिर कुछ दिलकर्ज़ लिखने को जी चाहता है॥
हो गये हैं यहाँ हम सभी रिश्तों में मतलबी
चीटियों से एकता का सूत्र सीखने को जी चाहता है॥
बचे रहे रिश्ते संसार में आज फिर
खुद बिकने को जी चाहता है॥

वो प्रेम भी शायद मतलबी हो गया है सबका
आज़ तो बस सूरत पे मरने को सबका दिल चाहता है॥
तुम समझौते कर लेते हैं ईश्क में
आज हमारा सीरत परखने को जी चाहता है॥
हो सबसे रिश्ता प्यारा इंसानियत का
आज गमों को दरकिनार करने को जी चाहता है॥
देखकर यहाँ बुजुर्गों को हताश
आज मेरा मरने को जी चाहता है॥
बचे रहे रिश्ते संसार में आज फिर
खुद बिकने को जी चाहता है॥

~ खेम चन्द

हिन्दी बोल इंडिया के फेसबुक पेज़ पर भी कलमकार की इस प्रस्तुति को पोस्ट किया गया है।
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