रिश्तों की अहमियत बहुत होती है, इन्ही रिश्तों संग ही तो हम अपना जीवन व्यतीत करते हैं। कुछ लोग बहुत पसंद आते हैं जिस कारण उनसे हमारा रिश्ता बेहतरीन बन जाता है। कई रिश्तों में कड़वाहट भी देखने को मिल जाती है जो उनसे जुड़े लोगों के बीच मनमोटाव को जगह देती है। कलमकार खेम चन्द की कविता में इन रिश्तों से जुड़ी अनेक स्मृतियाँ नज़र आती हैं।
कुछ अपने हैं तो कुछ इस जमाने की भीड़ में पराये हैं
ये रिश्ते संभालते-संभालते कुछ खास शख़्स हमने भी बनाये हैं॥
ढूंढते रहते हैं खुशियों को हर किसी के साथ
पल दो पल की तो सांसें उधार है अब हमारे पास॥
इस अंधेरी जिन्दगी को रोशन करने के लिये दीये हमने भी जलाए हैं
ज़रा ठहर कर आना हे गम की हवा हमारे रास्ते से सुना है तुने कई बार दीये बुझाये हैं॥
वो भी आ रहें हैं हमसे मिलने इस पल जो हमने नहीं बुलाये हैं
लाख -लाख शुक्रिया तुम्हारा हे खुदा कितनों से तुमने हम मिलाये हैं॥
ये जो दीवारों का शहर है आज हर कहीं
ये पत्थर ये तारों का जाल हमने ही तो बनाये हैं॥
साथ होगी मानवता कभी साथ होगी इंसानियत की रूहें सभी
ये स्वप्न नींद से जागकर नादान कलम ने सजाये हैं॥
रिश्तों में कड़वाहट मत घोला करो जमाने में साथियों
उस बहती सरिता से पुछो उसने पर्वत से लेकर सागर तक कैसे रिश्ते निभाये हैं॥
होती है गलतियाँ इंसान से माफ करने का रिवाज़ भी कई बार अपनाये हैं
ये रिश्ते बड़े कोमल से होते हैं समझने से ही ये कई बार बचाये हैं॥
दौलत से कभी मत तोलना रिश्तों को
इस दौलत ने कई रिश्ते जमाने से मुकाए हैं॥
जिन्हें कद्र होती है यहाँ अपनों की
उन्होंने कई बार दौलत के दाम ठुकराये हैं॥
कुछ अपने हैं, तो कुछ इस जमाने की भीड़ में पराये हैं॥~ खेम चन्द
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