अपने वतन से दूर रहने का गम किसी परदेशी से बेहतर और कौन जान सकता है। दूसरे वतन में रहकर अपने देश की बातें और लोगों की याद आना स्वाभाविक है। कलमकार इरफ़ान आब्दी मांटवी ने भी इसी दुविधा को इन पंक्तियों में वयक्त किया है।
जो घर से दूर होते हैं
बड़े माज़ूर होते हैंदिलों की खस्ता हालत से
थकन से चूर होते हैं
हमारे अश्क आंखों में
जमे काफ़ूर होते हैंयह खुशियों के हर लम्हे
बहुत नासूर होते हैं
रुलाने को हमें, हम पर
खबर मामूर होते हैंदिखी मां ख्वाब में, रब के
बहुत मशकूर होते हैं
मिले जब हमवतन अपना
तभी मसरूर होते हैंबिताना वक़्त गिन गिन कर
मेरे दस्तूर होते हैं
यहां पे फ़ैसले सारे
मुझे मंज़ूर होते हैंबराए घर जो बेघर हैं
बहुत गय्यूर होते हैं
यहां वो सब नहीं इरफ़ान
जो गाज़ीपुर होते हैं~ इरफ़ान आब्दी मांटवी (गाज़ीपुरी)
Post Code: #SwaRachit355