मानव-जीवन

मानव-जीवन

सृष्टि में मानव जीवन सर्वश्रेष्ठ माना जाता है जो बुद्धिमान और प्रगतिशील है। कलमकार रमाकान्त शरण जी लिखते हैं कि आजकल हमारी मानवता जैसे खो सी गई है; वे हम सबसे पूछतें हैं कि क्या! यही है मानव जीवन?

सद्ग्रन्थों में है वर्णित
बड़े भाग्य पूर्व जन्म की साधना
और सत्कर्म से प्राप्त होता है
चौरासी लाख जीवों में सर्वश्रेष्ठ
सुर दुर्लभ यह मानव तन।
जब-जब बसुंधरा पर बढ़ा है
पाप अन्याय आतंक और अत्याचार
करने प्राणियों का कल्याण एवं
हरने भूमि का भार
नारायण ने भी लिया
नर रूप में अवतार।
इतिहास है साक्षी
हर युग में पैदा हुए
अनेक कालजयी प्रतापी वीर वीरांगना
साधु-संत साहित्यकार विदूषी ज्ञानीजन
जिन्होंने अपनी प्रतिभा पूंज से
किया सम्पूर्ण अवनि को आलोकित
किया प्राणिमात्र का कल्याण
सिद्ध कर दिखलाया
कितना उपयोगी है मानव जीवन।
संप्रति विषय है विचारणीय
हम क्या थे और क्या हैं अभी?
कलपती होंगी पुरुखों की आत्माएँ भी
यदि स्वर्ग से धरा को निहारते होंगे कभी।
सर्वत्र फैला है अन्याय आतंक और अत्याचार
प्रतिदिन हो रहे बलात्कार ने
मानवता को किया शर्मसार।
आतंकवाद भ्रष्टाचार लगातार जारी है
सत्ता धृष्टराष्ट्र व्यवस्था गांधारी है।
नैतिकता की बात ही क्या करें
यह हो गई है ऊपर फेंकी गेंद की तरह
जो कभी ऊंचाइयों को छू रही थी
आज नीचे गिर रही है निरंतर।
दहेज़ की बलि बेदी पर चढ़ रही हैं बेटियाँ
बुजूर्गों का हो रहा घोर अपमान
सत्ता और ऐश्वर्य की प्राप्ति के लिए
करते हैं कोई भी कुकर्म मचा है घमासान।
पार कर रहे हैं क्षुद्रता की पराकाष्ठा
प्रतीत होता है बेबश लाचार और असहाय जीवन
छल प्रपंच झूठ कदाचार व्यभिचार
अन्याय अत्याचार और अवसाद से भरा जीवन
क्या! यही है मानव जीवन?

~ रमाकान्त शरण

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