बाग-बगीचे हमारे पर्यावरण का हिस्सा हैं और हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हैं। इनकी अपनी भी एक कहानी होती है, कलमकार कन्हैयालाल गुप्त जी उपवन के बारें में चंद पंक्तियाँ लिखकर प्रस्तुत की हैं।
बाग उपवन सेहत को मजा देता है।
भौरा तो फूल पर मड़राया करता है।
कोयल भी बसंत में गाया करती है।
तितलियाँ फूलों पर सुगंध लेती है।
वातावरण को सुरम्य बनाने में
बाग उपवन का बड़ा महत्व है ।
प्रीत का राग उपवन जगाते है ।
प्रेमी प्रेमिका को मधुमास लुभाते है।
राधा को कृष्ण से प्रेम कुंज गलियों में हुई थी।
राम भी तो पुष्प वाटिका में सीता से मिले थे।
मीरा भी तो कृष्ण की दिवानी हुई थी।
उसकी आँखों में नदियों सी रवानी हुई थी।
मीरा का दिवानापन तो विषपान से भी न गया।
कुब्जा पर भी तो कृष्ण का रंग चढ़ा।~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त “शिक्षक”
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