भारत वर्ष की शौर्यभूमि में अनेक सिद्ध पुरुष व अजेय महायोद्धाओं ने जन्म लिया। जिन्होंने अपने पीछे स्वर्णिम इतिहास अंकित किया ताकि आने वाले हर भारतीय के दिलों में राष्ट्रभक्ति हमेशा जाग्रत रहे। भारत के गौरव अजेय योद्धा छत्रपति शिवाजी का जन्म 19 फरवरी 1630 को मराठा परिवार में हुआ था।
1674 में शिवाजी ने राज सिंहासन पर आसीन होकर नवीन शौर्य गाथा और उदार सत्ता की नींव रखी। शिवाजी ने हिंदुस्तान के सभी लोगों को भयमुक्त होने का संदेश दिया। कहते हैं कि कभी बचपन के दिनों में खेल खेल में किला जितना इनकी शौर्य और हुनर को विशेष रूप से दर्शाता है। युवा होते होते जब शिवाजी ने अपने शौर्य और बाहुबल से शत्रुओं के दांत खट्टे कर दिए। इतनी कम अवस्था में पुरन्दर और तोरण किलों पर अधिकार जमाना कोई शिवाजी जैसे महायोद्धा से सीखे यही कारण था कि इनकी शौर्य गाथा भारत के हर प्रान्त में आग की तरह चर्चा में आ गयी। फिर क्या था सभी शत्रुदल भयातुर हो गए।
शिवाजी के युद्ध कौशल के चर्चे हर जगह थे उनसे डरे सहमे हुए बीजापुर के राजा आदिलशाह जब शिवाजी का कुछ न बिगाड़ सके तो आदिलशाह ने शिवाजी के पिता शाह जी को बेड़ियों में जकड़ कर बन्दी बना लिया। यह समाचार जब शिवाजी को मालूम हुआ तो वे अत्यंत क्रोधित हो गए। शिवाजी ने अपने रणकौशल से अपने पिता शाह जी को आदिलशाह के कब्जे से मुक्त करवा लिया। इससे क्रुद्ध होकर आदिलशाह ने भी यह घोषणा कर दी कि शिवाजी को जिंदा या मुर्दा पकड़ के लाया जाए। इस कार्य को अंजाम देने के लिए आदिलशाह ने सेना प्रमुख अफजल खान को नियुक्त किया। शिवाजी से तो उस समय सभी भयातुर रहते थे। इस कारण एक साजिश के तहत अफजल ने कूटनीति और भाईचारे का ढोंग रचा परन्तु शिवाजी शत्रु की आंखों से ही सब कुछ जान लेते थे। अतः अपने ही बिछाए जाल में अफजल खान स्वयं फसकर शिवाजी के हाथों मारा गया। इससे आदिलशाह की सारी सेना युद्ध का मैदान छोड़कर भाग खड़ी हुई। शिवाजी की सेना में 40000 सैनिक घुड़सवार एक लाख पैदल चलने वाले सैनिक 1260 से अधिक हाथी थे। युद्ध को अंजाम तक पहुंचने के लिए शिवाजी अपनी सेना को कई टुकड़ियों में विभाजित किया करते थे। अपने अनोखे रणकौशल के चलते शिवाजी ने अनेकों किलों पर अधिकार जमा लिया था।
पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में 3 अप्रैल सन 1680 में शिवाजी महाराज का देहावसान हो गया। अजेय योद्धा शिवाजी महाराज का योगदान हमेशा प्रेरणादायक व स्मरण रहेगा। मां भारती के ऐसे वीर सपूतों को शत शत नमन।
~ राज शर्मा (संस्कृति संरक्षक)
आनी कुल्लू हिमाचल प्रदेश