एकाकीपन, हवाएँ, चांद-तारे, लोगों की बातें अक्सर किसी की याद दिला देतीं हैं। कलमकार अमित मिश्र ने विरहिणी की मनोदशा को वयक्त करते हुए लिखा है कि कब-कब उसे अपने प्रियतम की याद आ जाती है।
जब चलने लगी हवा पुरवाई
तब याद मुझे पिया की आई ।
मेरे पिया बसे हैं परदेश में
मुझे पता नहीं किस देश में ।सावन बरसे भादव बरसे
दीद को तेरे मेरे नैना तरसे ।
बीत गये दिन खबर न आई
तब याद मुझे पिया की आई ।सावन बीता आई दीवाली
दिल लगता है खाली खाली ।
पतझड़ बीता वसंत भी आई
लेकिन नहीं आई तेरी परछाईं ।दिल सूना जब छाई तन्हाई
तब याद मुझे पिया की आई।
रस्ता तकते थके मेरे नैना
दिल को मेरे अब नहीं चैना ।अब तो चले आओ तुम साजन
सूख गए मेरे आखों के अंजन ।
याद तुझे कर आँख भर आई
तब याद मुझे पिया की आई ।~ अमित मिश्र
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