नम्रता

नम्रता

विनम्र स्वाभाव से आप लोगों के स्नेह और आदर के पात्र बनते हैं, उनके हृदय को जीत जाते हैं। कलमकार कन्हैया लाल गुप्त जी ने अपनी कविता में नम्रता के बारे में विस्तारपूर्वक बताया है, आप भी पढें और स्वयं में विनम्रता के गुण को समाहित करने का प्रयास करें।

नम्रता व्यक्ति की पहचान होती है।
यही तो मानवता की जान होती है।
नम्र व्यक्ति की वाणी में ओज होता है।
नम्र व्यक्ति को ही गुरु भक्ति प्राप्त होती है।
नम्रव्यक्ति सभ्य समाज का प्रतीक होता है।
नम्र वाणी मन-मानस को तृप्ति करता है।
नम्रता के कारण सूर के पद मानस में है।
नम्रता के कारण मीरा भक्ति भाव में है।
नम्रता के कारण तुलसी में लोकमंगल भाव है।
कबीर की साखी से समाज में सद्भाव है।
नम्रता के कारण रसखान रसों के खान है।
नम्र वाणी से मन की वीणा बजती है।
तभी तो राधा कृष्ण की बंशी पर रीझती है।
नम्रता से बँधकर कृष्ण विदूर घर जाते है।
दुर्योधन के छप्पन भोग को ठुकराते है।

~ डॉ. कन्हैया लाल गुप्त

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