क्षणिकाएं

क्षणिकाएं

जीवन के यथार्थ को प्रकट करतीं हुईं कलमकार मुकेश बिस्सा की कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं। छोटी छोटी सी चीजों में बड़ी-बड़ी खुशियाँ छिपी होती हैं।

दुख सैकड़ों मिलते हैं
दुख लेने वाला नहीं मिलता
दिल जिस से मिले खुशी हमें
हमको वो दिलदार नहीं मिलता
डूबेगी जब कश्ती साहिल के करीब
भूले हुवे माझी को पतवार नहीं मिलता
आ चलें दूर ए दिल इस शहरे तम्मना से
देखा हैं यहां कोई यार नहीं मिलता ।१।

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खिले हैं फूल कांटों के साथ बस कर
फिर माला बनेगी तो अहमियत होगी
न बैठों कभी गाँव की चौपालों पर
कहीं दिया जलाओ तो रोशनी होगी
अपने पराये के फेर में मत पड़िये
सांस उठने पर सुपर्दे खाक ही होगी ।२।

—–

इस तरह रोज मौसम बदलता है
शाम को सूरज के बाद चांद निकलता है
वो जगह है कि जिसमें आदमी को देखकर
आदमी ही कितने सारे रंग बदलता है
जिनके नूर पे हंसी का सैलाब था कभी
अब वो आंसुओं की बूंद से छलकता है ।३।

~ मुकेश बिस्सा

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