विदाई

विदाई

बेटी की विदाई का माहौल बहुत गमगीन होता है, एक तरफ तो उसका घर बसाने की खुशी और दूसरी ओर जुदाई का गम भी होता है। कलमकार खेम चन्द ने अपनी कविता में विदाई के आभास और कुछ अन्य पहलुओं को संबोधित किया है।

अपनों से दूर होना भी कितना तकलीफ़ भरा होगा
जब जाऊंंगी माँ बाप का घर आंगन छोड़कर हर कोई रोयेगा।
कितनी अज़ीब है मेरी ये पहेली
आज़ दूर हो गयी मुझसे सखी सहेली
अपनों को तो छोड़ दिया गैरों के बीच में हूँ नई नवेली
लड़कियों की क़िस्मत खुदा! क्यूं है इतनी अकेली?
आज हो रही हूँ पराई पर इस घर की हमेशा रहूंगी ज़ाई
पवित्र रिश्तों पर नहीं पड़नी चाहिये कोई खाई।
माँ जब याद आये मेरी तो तुम देख लेना अप नी परछाई
मैं तो हमेशा तुझमें हूँ समाई।
गंगा की तरह शांत रहूँगी
कभी किसी को भी भला बूरा नहीं कहूंगी।
याद आयेगी माँ मुझे भी तेरी
मैं तो माँ काम करूंगी शिमला की सेरी।
वो साथ बैठना याद रहेगा
विद्यालय की यादों को कौन शब्दों में कहेगा।
देखती रही नज़रें भी उस पल हमारी
रोज़ याद आयेगी आपकी बातें सारी।
चिन्तामुक्त तुम रहना हमारी बिटिया दुलारी
अब तुम्हारे कंधों पर बहोत सारी जिम्मेवारी।
दो पल की जुदाई से मैं गंगा नहीं डरूंगी
खुशियों से सदैव पिया का घर आँगन भरूंगी।
कितनी अबूझ है जिन्दगी ये मेरी
मुझ पर हमेशा रहेगी बन्दगी खूदा तेरी।
बरसों इन्तज़ार किया जिस पल का मैंनें
आखिरी आज छलक पड़े भीगे नयन मेरे।
क्यूंकि लेने थे पिया संग सात फेरे।
जिन बातों से थी मैं अनज़ानी
अब लग रही है वो बातें जानी पहचानी।
इतनी छोटी भी नहीं है ये विदाई की कहानी।
आज हो गया बाबुल का घर आँगन सूना
मैंने रिश्तों का है नया सागर बूना।
हो रही है अब मेरी बिदाई
मुझे कभी समझना पराई।
महीनों पहले हुई थी हमारी सगाई
आज़़ गंगा उस बात को है समझ पाई।
जिन्दगी में आते जाते रहेंगे तूफान
तू डगमगाना नहीं चिन्ता छूना है आसमान।
बहोत प्यारा लग रहा था तुम्हारा दूल्हन वाला हार श्रृंगार
जब पिया संग जाने को तुम्हें कर रहे थे तैैयार।
बहोत बड़ा है ये संसार
बदलना नहीं तुम अपने विचार।

~ खेम चन्द

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