पिता की छत्रछाया में पलकर सभी बढते हैं, पिता अपनी संतान को कोई तकलीफ नहीं होने देता है। कलमकार आलोक कौशिक कहते हैं ऐसे पिता की आँखों में यदि आँसू आ जाते हैं तो वह बहुत दुखद क्षण है।
बहने लगे जब चक्षुओं से
किसी पिता के अश्रु अकारण
समझ लो शैल संतापों का
बना है नयननीर करके रूपांतरणपुकार रहे व्याकुल होकर
रो रहा तात का अंतःकरण
सुन सकोगे ना श्रुतिपटों से
हिय से तुम करो श्रवणअंधियारा कर रहे जीवन में
जिनको समझा था किरण
स्पर्श करते नहीं हृदय कभी
छू रहे वो केवल चरण~ आलोक कौशिक