दिमागी दिवालियापन

दिमागी दिवालियापन

धन से दिवालिया हो जाना लोगों को स्वीकार्य होगा किंतु दिमाग से दिवालिया होना गवारा न होगा। धन तो आता जाता रहता है लेकिन सद्बुद्धि चली जाने से बहुत अहित होता है। कलमकार अजय प्रसाद जी ने दिमागी दिवालियेपन पर कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं, आप भी पढें।

दिमागी दिवालियेपन की हद है
ख्वाबों में जीने की जो आदत है।
इमानदारी से मेहनत के बगैर ही
चाह बेशुमार दौलत की बेहद है।
हश्र पता है सबको अपना मगर
अपनी नज़रों में सब सिकंदर है।
नंगापन, ओछापन, बदजुबानी ही
शोहरत के लिए अब ज़रूरत है।
रखकर तहजीबों को ताख पर
करते बुजुर्गो से रोज बगावत है।
क्या करेगा अजय तू चीख कर
सुनता कौन तेरी यहाँ नसीहत है।

~ अजय प्रसाद

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