सफर में ठोकर लग जाने से हम मंजिल नहीं भूल जाते बल्कि पुनः खड़े हो उसकी तरफ़ अग्रसर होते हैं। कलमकार साक्षी सांकृत्यायन की ये पंक्तियाँ सतत बढते रहने का संदेश देती हैं।
ठोकर लगे तो क्या हुआ सम्भल के आगे और बढ़।
प्रयत्न करता ही रहे कठिनाइयों के संग लड़।
तू हौसला बुलंद कर इन हौसलों के संग बढ़।
ऊचाईयों की चोटी पे निडर अकेला तू ही चढ़।
न डर किसी अंजाम से विश्वास से तू आगे बढ़।
काटों भरी इन राहों में सच्चाई के ही पथ तू चल।
थोड़ा सा कष्ट होगा ही कष्टों को सह के आगे बढ़।
मंजिल को पाना है अगर बिन उफ्फ़ कहे तू बढ़ता चल।
पथ में बहुत ठहराव है पर ख़ुद को तू संयम से भर।
ठोकर लगे तो क्या हुआ…~ साक्षी सांकृत्यायन
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